Saturday, 30 January 2016

जिन्दगी धुएँ की तरह

धुएँ की लपटें लगातार उपर उठती और फिर दीवार की छत से टकरा कर पूरे कमरे में पसर जाती जैसे कोई रोशनी बिखरती हो सुबह की कुहासे में। दरअसल दिसम्बर का महीना अकसर लोगों को मौकापरस्त बना देता है ये ऐसा मौसम होता हैं जिसमें लोग खुद को वक्त का एक बोझ समझने लगते है। एक तो दिन
मुख़्तसर सी होती है और रात जब भी होने को होती है तो शाम से ही तन्हाई एक घटा बनकर छा जाती हैं। अकसर सही कहते हैं लोग - वक्त मौकापरस्तों का रहनुमा नहीं होता।
मैमसाब कुछ खाने को लाऊँ?
नहीं काका, अभी नहीं.. अभी मूड कुछ अच्छा नहीं है, थोड़ी थकान हैं.. मैं बाद में आपको खुद बुला लूंगी।
अएए! वो क्या है ना मैमसाब आज मेरा बेटा आने वाला है, तो मैं सोच रहा था आपको खिला देता तो..

अच्छा, कोई बात नहीं आप चले जाइये मैं खुद से खाना ले लूंगी।
धन्यवाद! मैमसाब।
सिगरेट की कश से जब भी सुमोना रिहा होती तो वो खुद को अपने डायरी की किसी पन्ने से जकड़ लेती। 32 वर्ष की हो चली सुमोना पेशे से एक लेक्चरर हैं और हाल में ही उनका तबादला इस क्रम में शिमला में हुआ है। शिमला में सुमोना का अपना खानदानी बंगला हैं  वो अपने तबादले के साथ अपने घर की भी देखभाल करने की कोशिश कर रही हैं।
काश! ये रिश्तों की कडवाहटें भी बंगले में पड गए इस धूल की तरह होते तो कितना अच्छा होता कमसेकम समझ आने पर उन्हें फिर से एक खूबसूरत आईने की तरह संवारा तो जा सकता, मगर ऐसा कहाँ कभी होता हैं। अपनी सोची हुई चीजें अकसर खुद को ही ना मिलने पर कष्ट देती हैं। किसी की उम्मीदें.. तो किसी को उम्मीदों से बाँधकर अकसर निराशा ही हाथ आयी हैं - सुमोना जब कभी भी ये सोचती है तो वो अंदर तक सिहर जाती जैसे पूरे शिमले की ठंड उसे बुत बना देना चाहती हो.. और अब वो ये सोचकर खामोश रहती हैं की अब शायद इनसे लड के भी क्या करना।
हैलो! हैलो..
सुमोना ने ऊंघते हुये बोला क्या काका! अभी उठा दिया आज तो सन्डे हैं ना।
सारी, मगर आज बाबा नहीं मैं आया हूँ, मेरा नाम रवि हैं, मैं आपके लिये चाय लेकर आया हूँ  और एक सवाल मैं आपको क्या कहकर बुलाऊँ मैमसाब या कुछ और।
सुमोना ने मुस्कुराते हुये कहा- बस सुमोना कहा करो, तुम क्या करते हो और हाँ, मैं चाय नहीं काफ़ी पीती हूँ लगता हैं काका ने तुम्हें बताया नहीं होगा।
हम्म। सुमोना जी बताया तो था, लेकिन मैंने अनसुना कर दिया था ये सोचकर लिटरेचर की लेक्चरर और चाय नहीं पीती होंगी।
सुमोना ने इस दफे कोई जवाब नहीं दिया और ना ही कुछ बात करने की कोशिश की - बस रवि की ओर देखकर मुस्कुरा भर दिया था।
सुमोना अपने ऐश-ट्रे को छिपाने की कोशिश से उठी की कल रात की लिखी सारी कविताएँ फर्श पर बिखर गयीं। हर बार ऐसे ही होता हैं जब भी कोई चीज़ समेटने की कोशिश करो तो कोई समेटी हुई चीज बिखर जाती हैं। मगर हालात और इंसान कभी भी अपने नाकाम कोशिशों के बाद भी बाज़ नहीं आते।
रवि ने कमरे के पर्दों को खोलकर सूरज की झनती हुई किरणों को कमरे में आने की अनुमति दे दी थी, लेकिन कमरे में इतना सन्नाटा था कि कागजों के गिरने भर से रवि चौंक सा गया। फिर कुछ सँभलकर बोला - सुमोना जी! आप रहने दीजिए मैं समेट देता हूँ इसे।
काश! काश .. कोई समेट पाता। सुमोना ये कहकर खुद से कागजों को समेटने लगीं।
रवि ने भी कोई कोशिश या कोई जिद नहीं की, वो समझ चुका था कुछ घाव जिस्म पे नहीं दिल के भीतर किसी कोने में दबे रहते हैं जो तभी खुला करते हैं जब कोई हमनवा या हमदर्द उनके साथ हो।
तुम बताओ! तुम क्या करते हो? सुना है कि बच्चों को पढ़ाने लगे हो।
जी, बिलकुल सही सुना है। थोड़ा बहुत पढ़ा लेता हूँ, इसलिये स्कूल वाले झेल रहे है मुझे।
इस बात पर दोनों ने एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिया।
और बताओ, कितने दिनों की छुट्टी लेकर आये हो?
छुट्टी तो लेकर नहीं आया, बस कुछ काम है उसी के सिलसिले में आया हूँ यहाँ।
अच्छा, क्या काम है?
जी, मुझे दरअसल.. एक मिनट काल आयी है जरूरी, आइ हैव टू पिक दिस।
सुमोना ने एक मुस्कुराहट अपने चेहरे पर लाकर जैसे इजाजत दे दी.. अकसर होता भी ऐसा ही है जब हमें कुछ समझ में नहीं आता तो हम किसी दूसरे की खुशी को ही अपनी खुशी मान लेते है। इंसान होते हुए भी इंसान खुद के स्वभावों से परिचित नही होता उसे अकसर खुद की ही सोचो पर परेशानी और हैरानी होती रहती है। शायद! इसलिये इंसान को कुदरत का सबसे अजीबोग़रीब पेशकश माना जाता है।
छुट्टी के दिन होने के कारण.. कोई उबाऊ जेहन को ना घेरे इसलिए सुमोना अब अपनी डायरी लिखा करती है या कोई घर का हिसाब किताब और अगर कुछ भी ना हो तो खुद को अखबारों में उलझा लेती है। लेकिन ऐसे पहले नहीं थी सुमोना.. मगर जबसे उनके पिता जी इस दुनिया से गुजरें है वो उदास रहती है और उनकी परेशानी का मुख्य कारण उनके पिता की आखिरी इच्छा है - वो चाहतें थे कि सुमोना उस लड़के से शादी करके अपना घर बसा ले जिससे बचपन में अंजाने में उसके पिता ने उसकी मंगनी कर दी थी, उस वक़्त सुमोना की उम्र ही क्या थी यही कोई 13 साल उसे तो ढंग से कुछ भी याद नहीं।
अच्छा! सुमोना जी, अब मैं चलता हूँ। आपको और कोई काम तो नहीं है।
नहीं, फिलहाल कोई काम नहीं है.. अच्छा शाम में तुम क्या कर रहे हो? फ्री हो तो चाय पीने चले कुछ बातें भी हो जाऐंगी और कुछ बाहरी तफरी भी हो जायेगा।
हम्मम, अच्छा! 7:00 बजे तक मैं आ जाऊंगा आप तैयार रहना।
ओके।
बाय, सी यू एट 7:00

कैसी लगी.. तुम्हें यहाँ की चाय?
अभी तो पहली चुस्की ही ली है.. और ये इतना गर्म चाय क्यूं पिलाते है।
क्यूं क्या हुआ? और चाय ठंडी कहाँ मिलती हैं और उसे पीता कौन है।
लेकिन कसम से, इतनी गर्म कहीं नहीं मिलती।
ख़ैर, और बताइये.. कैसा रहा आपका दिन।
मसलन?
मतलब पूरे दिन क्या किया आपने।
धूप में बैठीं रही.. कभी कभार डायरी में कुछ लिख लिया तो कभी खुद का ही लिखा हुआ कई बार पढ़ लिया।
आप खुश तो है ना?
क्यूं, तुम्हें ऐसा क्यूं लगा।
नहीं मैंने तो बस ऐसे ही.. मैंने आपको खामोशी में रहते कई बार देखा है, शायद इसलिए एकदम से ये पूछ बैठा।
चाय पीओ, ठंड हो रही है।
हुम्ममम।
दरअसल, बात बताने वाली है नहीं कि सबको चीखें मार-मार के बतायी जाये.. मगर अब किसी से ना कहो तो अंदर ही अंदर घुट के..
तो, फिर आप बताए, शायद! मैं आपकी कुछ मदद कर सकूँ।
इस वक्त तो ख़ैर कोई मेरी मदद नहीं कर सकता और ना ही मैं किसी के मदद के इंतजार में बैठीं हूँ। बात शादी से समझौते तक पहुंच गयी थी, मुझे घर संभालना था शादी के बाद.. वो भी इस शर्त पर कि मैं अपना घर खुशी-खुशी उसके नाम पर कर दूं। साँसें मैं कब लूंगी और कैसे ये सब तय किया गया था मगर मैं इसे दुत्कारती हूँ मैंने आजादी चाहीं और रिहा हो गयी।
माफ़ कीजिए इसे आजादी नहीं बेबाकी कहते है। ख़ैर आपका इंतख़्वाब भी वाजिब था, इन हालात में कोई भी वही करता जो आपने किया है। मगर यह सब समझते हुए खुद को एक दलदल के मझधार से बांध के भी तो रखा हुआ है आपने, उसका क्या?
मैं खुद कुछ नहीं समझ पा रही हूँ, मैं जाने कौन सा बोझ लेकर चल रही हूँ.. समझ नहीं आता।
मेरे ख्याल से आपको अब अपने जिन्दगी में आगे देखना चाहिए। जिन्दगी ना तो कभी एक गलत फैसले तले खत्म हो जाती है और ना ही किसी के गुजर जाने से रूकती है। अगर आप चाहें तो मैं आपके साथ आपकी तमाम जिन्दगी बिताना चाहता हूँ, मुझे नहीं पता मैं ये सब इतनी जल्दी और ऐसे जगह बैठकर क्यूं कर रहा हूँ। मेरी छुट्टियाँ तो काफ़ी लम्बी है और मुझे काम भी इन छुट्टियों में एक ही था.. अब बस, पूरी छुट्टियाँ आपके जवाब के इंतजार में गुजरेंगी, बस एक आपके हाँ के इंतजार में।

नितेश वर्मा 

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