इस साल से उतनी ही मुहब्बत है जितनी इस साल के जल्दी-जल्दी बीत जाने से शिकायत। कुछ ख्याल अभी जेहन से उतरकर लबों पर ठहरें ही थे कि यह सितगमर अलविदा कहकर जाने को उतारूँ हो गया। ख़ैर ख्याली पुलाव है, पकती रहेगी और पक कर खैराती भी बटेगी। जो अपना हो नहीं पाया, जो खुद में ठहर नहीं पाया, जो हर वक़्त नज़रों में चुभता रहा, जो मुझे समझ नहीं पाया, जो मुझे समझ नहीं आया, सब एक जलती टीस बनकर मुझमें बरकरार रहेगी, जाने कब तलक! पता नहीं। 2015 खुशनुमा भी रही तो कहीं बदनुमा भी रही। सफ़र बेहतरीन रहा कुछ से दुश्मनी हुई तो बहोतों से दोस्ती, किसी की यादों में रात गुजारी तो किसी की आँखों में किताब बनकर ठहर गये, जानलेवा सरप्राईज भी मिलीं, कहीं दौड़ते-भागते साँसें भी ठहर गयी। सब कुछ हुआ फिर भी बाकी बहुत कुछ रह गया इस उम्मीद में 2016 भी जीना है किसी उम्मीद में।
अब जो कसक उठी है तो तुमपर ही आकर ठहरेगी एक बार फिर से कोशिश होगी तुम्हें खुद में चुरा लेने की आखिर ये 31 दिसम्बर की रात कुछ हसीन हो तो यह दिल जाकर 2015 से मुतमईन हो। बस इंतजार है तुम्हारा, और रहेगा जाने कब तलक, पता नहीं। 2015 के बीत जाने से, 2016 के आने से यकीनन बदलेगा ये जिस्म मगर रूह वहीं रहेगी तुमसे एक हो जाने की जिद में। मिलन की आस में हाय! ये दिसम्बर भी गुजर गयीं प्यास में।
ये 31 दिसम्बर की रात आज फिर गुजर जायेगी
कहते है कि 2016 आके खुशियों से भर जायेगी।
नितेश वर्मा और 2016
अब जो कसक उठी है तो तुमपर ही आकर ठहरेगी एक बार फिर से कोशिश होगी तुम्हें खुद में चुरा लेने की आखिर ये 31 दिसम्बर की रात कुछ हसीन हो तो यह दिल जाकर 2015 से मुतमईन हो। बस इंतजार है तुम्हारा, और रहेगा जाने कब तलक, पता नहीं। 2015 के बीत जाने से, 2016 के आने से यकीनन बदलेगा ये जिस्म मगर रूह वहीं रहेगी तुमसे एक हो जाने की जिद में। मिलन की आस में हाय! ये दिसम्बर भी गुजर गयीं प्यास में।
ये 31 दिसम्बर की रात आज फिर गुजर जायेगी
कहते है कि 2016 आके खुशियों से भर जायेगी।
नितेश वर्मा और 2016
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