Saturday, 30 January 2016

उम्र: एक कहानी सी

मेरे ख्याल से छुट्टियों में सबको घर चले जाना चाहिए। शहर में कोई हो ना हो मगर वहाँ की गलिया जरूर होती हैं जो आपके इंतजार में पागल रहती हैं। उम्र बड़ी नाज़ुक सी चीज है, जिस वक्त में वो गुजरती है उसी के ख्यालों में डूबी रहती है।
बचपन बहोत शानदार थी मेरी - उम्र 11 साल। मुहल्ले का रावण, अभी दिमाग शैतानी वाला है। क्रिकेट का दिन भर खेल, नाले में गयी गेंद को निकालना फिर उसे बिना धोये कंटीन्यू क्रिकेट करना.. और इससे भी कुछ कसर बाक़ी रह जाये तो उसी हाथ से किसी दोस्त के खरीदे सामान में हिस्सा कर लेना.. जो हिस्से में आया उसे मुँह में ठूंस के फिर क्रिकेट कंटीन्यू कर देना। उस वक़्त अंग्रेजी पढ़ाने लिये एक मास्टर आया करते थे 150 ₹ महीने पर.. ये बात बहोत अच्छे से याद है क्योंकि हमेशा की कूटाई के साथ हर दफा ये बात रटवायी जाती। थोड़ी गरीबी थी, मगर सुबह के लिए 1 ₹ और शाम के लिए एक अधन्ना मिल जाया करता था, कहिये तो पूरे ठाठ में था मैं। सुबह 1 ₹ की निमकीन और शाम के अधन्ने से कंचे। कंचे बहुत कमाए हैं मैंने अपनी जिंदगी में, इस बात की बहोत खुशी है, और इसे बताने का अपना ही एक अलग मज़ा। पढ़ाई एक मंहगे से संस्कृत स्कूल में.. फीस 500₹। अभी भी वो बहुत मंहगी स्कूलों में से एक है.. ये बात भी बिलकुल अच्छे से याद है क्योंकि जब भी कूटाई होती.. ख़ैर.. छोड़िये.. जाने दीजिए।
अब उम्र 17 है - एक बहोत ही मुँहजोर लड़का। अपने कालोनी का सिकंदर.. नहीं सिकंदर नहीं.. चलो फिर हिटलर.. पूरा का पूरा अपना राज। अब घर से रोजाना बढ़ा दिया गया है.. सुबह में 10 ₹ और शाम के 7 ₹.. शाम वाला आज तक समझ में नहीं आया 7 ₹ ही क्यूं.. क्योंकि उस वक़्त 7 ₹ में एक गोल्ड-फ्लैक भी आती थी। अब कूटाई कम हो गयी है, घरवालों की परेशानी बढ़ गयी है.. निजात के मौके तलाशें जा रहे है। और मेरे अभी भी ठाठ चल रहें है।
अब उम्र 19 है - घरवाले खुश है, बस माँ को अपवाद में लें ले तो। एक नया शहर, इंजीनियरिंग कॉलेज। दाखिला हो गया है, बिना कुटाई के फी भी बता दी गयी है। लोन पेपर्स लेकर आने की हिदायत भी दे दी गयी है। अब रोजाना महीनवारी तनख़्वाह में तब्दील हो गया है। एक मल्टीमीडिया सेट, लेप्टाप और कुछ नये कपड़े.. जूते पुराने ही है पिछले दीवाली पर खरीदे गये थे। कुल मिलाकर फिर से ऐश ही ऐश हैं, एक दफा फिर दुनिया घाटे में और मैं फिर मुनाफे में। इंजीनियरिंग कालेज, दारू-सिग्रेट से दिल नहीं लगा.. एक लड़की से बेशक.. और बेशर्म प्यार हो गया। ख़तों और तस्वीर के सिलसिले से आगे निकलकर फेसबुक का सहारा लिया गया। प्यार आगे बढ़ा फिर मुझसे बेहतर एक और लड़का बीच में आ गया, अब प्रेम कहानी ख़त्म हो गयीं है।
अब उम्र 23 है - इंजीनियरिंग कंप्लीट हो चुकी है, नौकरी ना के बराबर लगी है 19500 ₹ पर। बात पहले 27000 ₹ पर तय थी, फिर नालायक समझकर 19500 ₹ पर नौकरी थमा दी गयी। मैंने इंकार करना चाहा, फिर घरवालों ने 19500 ₹ पर ही खुशी जता दी.. नौकरी कर ली मैंने। 6000 ₹ लोन के कट जाने लगे है, 5500 ₹ पी जी वाले अंकल। घर वालों के मोबाइल रिचार्ज में 1000 ₹ उसके बाद सारा का सारा माल मेरा.. फिर से पूरी ठाठ.. ऐश ही ऐश है। उधार लेकर एक बाइक भी ले ली है.. सेकैन्ड हैंड, फिर कुछ दिनों बाद उसे चोर चुराकर ले गए.. खुशी है कि नयी नहीं खरीदी थी। फिर से इस दफा मुनाफे में।
अब उम्र है 27 साल - एक सभ्य इंसान, नज़रें सीधे रखकर चलने वाला इंसान। कविताएं, ग़ज़ले करने लगा हूँ.. कुछ शार्टस-स्टोरी भी लिख लेता हूँ, जो लिखता हूँ उसी को बार-बार पढ़ता हूँ, दूसरों से चिढन होती है.. सुनता भी नहीं। छुट्टियों के इंतजार में रहता हूँ, अगली दफा जो शहर गया उसे भी अपने साथ ही उठाकर इस शहर ले आऊंगा। बार-बार आना-जाना अच्छा नहीं लगता। और कहीं ले आया तो फिर.. मैं मुनाफे में और पूरी की पूरी दुनिया घाटे में। एक और बात अब तनख़्वाह 65000 ₹ हो गयीं है, अब ये कैसे हुआ मुझे खुद भी पता नहीं।

नितेश वर्मा 

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