बस मैं उससे 2 क्लास छोटा हुआ करता था, उम्र.. उस वक्त उम्र का कोई पता नहीं हुआ करता था और ना ही कोई किसी से ऐसी बेहूदा सवाले करता था। वो दिखने में बेहद खूबसूरत थी, मगर अकसर ये अलग क्लासों का फासला एक बहुत बड़ा मसला हुआ करता है, अगर आप कभी.. ऐसी किसी.. मझदार-ए-इश्क़ के सौदागर बने हो तो आप यकीनन मेरी बातों को चुपचाप मान लेंगे। अब प्यार तो अंधा होता है साहिब, तो मैंने भी कुछ नहीं देखा.. ना उम्र, ना क्लासों का फासला, और ना ही पुराने जमाने के हालात। अब यकीन हो चला था कि मैं इसी के इश्क़ में दीवाना होने के लिये बना हूँ, इससे सफल प्यार ही मेरे जीवन का एकमात्र मकसद है। छोटी उम्र होते हुए भी एक बड़ा सा जिगर लेकर मैदान-ए-इश्क़ में कूद पड़ा, बात अब बहस की ये थी कि प्यार कैसे जाहिर किया जाए। लौंडो की गुट बांधी गयीं, अकसर इन मामलों में ऐसे ही लड़कों की जरूरत पड़ती है। ख़ैर, कुछ चाय और चिप्स पर मनाये गए तो किसी को हमउम्र साथी सहेली से प्यार हो गया था, कोई हमदर्दी में आ गया था तो कोई गॅासिप्स के बहाने तो कोई बस ये देखने के लिये कि लड़कियाँ थप्पड़ कैसे मारती है। अब जितने शक्लें उतनी जुबाँ, उतनी ही बातें, मगर इससे किसी आशिक को क्या फर्क पड़ता है।
गुट बन चुकी थी, प्यार भी दिल ही दिल में हज़ारों प्रोपोजल संवार चुका था.. अब बस उसे कैसे भी करके परोसा जाना बाक़ी था। ख़ैर ऊपरवाले की हरी झंडी मिली और प्रोपोजल जा पहुँचा और जवाब में एक करारा थप्पड़ उनके भाई ने मुझे रसीद दिया। सारी गुटबंधी एक तमाचे के शोर से गायब हो गयी। तरस खाकर फिर मुझे भी छोड़ दिया गया, बस तक़लीफ इस बात की रह गयी कि उसने ना तो इज़हार कुबूल करा और ही अपने भाई से मुझे पीटने दिया। बात ये अरसों तक दिमाग में कोई समाधान नहीं ढूंढ पायी की आखिर वो था क्या? क्या वो भी मुझसे प्यार करती है और करती है तो भाई को इज़हार वाली बात क्यूं बता दी। अकसर ऐसे मामलों में लोग समन्वय बिठाते है तो मैंने भी वहीं किया, फिर से पीछा करने का सिलसिला जारी हुआ नजरों से नज़रें मिली कितनी दफा तो कुछ पल को ठहरी भी। मगर वो कहते है ना जमाने की आँख लग गयी, कुछ दिनों बाद मामला सामने आया उसे मुहब्बत तो थी मगर किसी और से जो उससे 2 क्लास बड़ा था, मेरे मुहल्ले का मुँहबोला भाई.. उसकी सहेली का दोस्त.. जिसके जिम्मे मुझे स्कूल भेजा जाता था।
नितेश वर्मा
गुट बन चुकी थी, प्यार भी दिल ही दिल में हज़ारों प्रोपोजल संवार चुका था.. अब बस उसे कैसे भी करके परोसा जाना बाक़ी था। ख़ैर ऊपरवाले की हरी झंडी मिली और प्रोपोजल जा पहुँचा और जवाब में एक करारा थप्पड़ उनके भाई ने मुझे रसीद दिया। सारी गुटबंधी एक तमाचे के शोर से गायब हो गयी। तरस खाकर फिर मुझे भी छोड़ दिया गया, बस तक़लीफ इस बात की रह गयी कि उसने ना तो इज़हार कुबूल करा और ही अपने भाई से मुझे पीटने दिया। बात ये अरसों तक दिमाग में कोई समाधान नहीं ढूंढ पायी की आखिर वो था क्या? क्या वो भी मुझसे प्यार करती है और करती है तो भाई को इज़हार वाली बात क्यूं बता दी। अकसर ऐसे मामलों में लोग समन्वय बिठाते है तो मैंने भी वहीं किया, फिर से पीछा करने का सिलसिला जारी हुआ नजरों से नज़रें मिली कितनी दफा तो कुछ पल को ठहरी भी। मगर वो कहते है ना जमाने की आँख लग गयी, कुछ दिनों बाद मामला सामने आया उसे मुहब्बत तो थी मगर किसी और से जो उससे 2 क्लास बड़ा था, मेरे मुहल्ले का मुँहबोला भाई.. उसकी सहेली का दोस्त.. जिसके जिम्मे मुझे स्कूल भेजा जाता था।
नितेश वर्मा
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