Monday, 5 September 2016

क़िस्सा-ए-चैटिंग

हाय!
क्या कर रहे हो?
-हाय, दी!
-कुछ भी नहीं, आप बताइये।
हम्म्म।
और ये दी किसे बोल रहे हो?
-आपको..
क्यूं?
मैं तुम्हारी कोई दी-वी नही हूँ।
है नहीं तो क्या, हुम्ममह।
-लेकिन आप मेरी बहन की क्लासमेट है ना? तो उस नाते हिसाब से दी बोल दिया।
ग़लत बोल दिया, मैं तुम्हारी दी नहीं हूँ।
फेसबुक पर भी दी ही बनाने के लिए फ्रेंड़ बनाया है क्या बुद्दू?
-रिक्वेस्ट आपने किया था।
अरे चलो! फिर ऐड क्यूं कर लिया। मुझे दी मत कहा करो। फेसबुक पर फ्रेंड्स होते है या समथींग लाइक..
-समझ गया।
क्या?
-माँ बुला रही है, मैं उन्हें सुनके फिर दूबारा आता हूँ, बाय।
ओके! और अबसे दी मुझे मत कहना।
जल्द आना, मैं इंतज़ार कर रही हूँ।
अगले दिन सुबह तक- नो रिप्लाइ
हाय!
दोपहर में तक भी- नो रिप्लाइ
अग़ेन हाय!
शाम में- नो रिप्लाइ
हाय!
दो-तीन दिन तक कोई ज़वाब नहीं, कोई चैटिंग नहीं।
चौथे दिन लड़के के घर पर-
ओह! आज कैसे आ गई?
बस यूंही।
और सब बताओ, कैसा है?
सब बढ़िया। तुम्हारा भाई नहीं दिख रहा कहीं, उम्म्म?
अरे! वो तुम्हारा भी भाई है जो बात करना चाहो जाकर कर लो, अपने रूम में ही होगा।
वो मेरा भाई नहीं है, समझी तुम?
अरे! क्या हो गया है तुम्हें? उसने कुछ किया है क्या?
नहीं वो ऐसे ही, चलो मैं उससे मिलकर आती हूँ।
चल ठीक है, मिल आ।
अच्छा बच्चू। यहाँ चैटिंग चल रही है, ज़रा देखूँ तो कौन है महारानी?
-कोई नहीं है, बस ऐसे ही कॅालेज़-फ्रेंड है।
कॅालेज़-फ्रेंड है? बच्चू मैंने भी कॅालेज़ किया है, मुझे सब पता है..
और यहाँ मुझे चैट आफ करके कहीं और गुलाब बरसाया जा रहा हैं, उम्म्म?
-सॅारी दी।
हुम्मम।
माफ़ कर दूँ? वो भला क्यूं? फिर से तुम चैट आफ कर दोगे, और फिर से मुझे बारिश में भींगते हुए यहाँ आना पड़ेगा।
-सॅारी दी। अबसे कभी नहीं होगा। देखिये, मैंने चैट अब आन भी कर दिया है।
हुम्मम, चलो इस बार माफ़ किया।
और ये दी-दी क्या लगा रक्खा है? कितनी बार मना किया है मैंने? मुझे दी कहकर मत बुलाया करो, समझे?
-फिर क्या कहकर बुलाऊँ?
मेरा नाम लेकर पुकारो।
-अच्छा नहीं लगता।
लगेगा.. पहले तुम पुकार कर तो देखो।
-ठीक है।
पुकारो फिर..
-शर्म आ रही है। आपके सामने कैसे..
भाग! बेवकूफ़। लेकिन याद रखो अबसे मैं तुम्हारी कोई दी-वी नहीं हूँ और ना ही तुम कभी मुझे इस तोते मैना वाले सीन में आकर इग्नोर करोगे।
ओके?
-ओके डन।
चलो मैं तुम्हें एक क़िस्सा सुनाती हूँ -
-अभी?
अभी नहीं तो कब?
सुनो चुपचाप।
-हुम्मम।
एक बार एक प्रेमिका अपने प्रेमी से बोलती है- मुझे वो तीन जादुई शब्द तुमसे सुनने है क्या तुम वो मेरे लिए बोलेगे?
प्रेमी बोलता है- हाँ, बिलकुल क्यूं नहीं?
प्रेमिका- तो फिर बोलो, मैं सुन रही हूँ।
प्रेमी- ॐ भट् स्वाहा।
प्रेमिका- धत तेरे की।
-हाहा..हाहा!
अच्छा था ना?
-क़िस्सा बोल के ज़ोक सुना दिया।
तुम्हें यहाँ नहीं समझाया जा सकता, मैं जब मैसेज करूँ तो रिप्लाइ फ़टाक से करना, देर नहीं होनी चाहिए थोड़ी भी।
चलो घर पहुँच कर मैसेज करती हूँ, रिप्लाइ तुरंत आ जाना चाहिए, ओके?
-ओके, दी।
हुम्मम, फिर से।
-सॅारी

नितेश वर्मा 

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