बेटा बताएं रहें हैं.. अभियो से भाग लो, वरना पियरका गुलाब देने के चक्कर में ढ़ंग से कूचा जाओगे। बेटा इ दिल्ली ना है कि इहाँ गुलाब के कलर से मतलब निकाला जायेगा.. इहाँ गुलाब का बस एक्के मतलब होता है और उ है प्यार, मुहब्बत, इश्क़-ए-इज़हार। लगता है.. तुम इ वाले शे'र से अभी बहुते दूर हो.. अबे सुन लो बे! काहे ऐतना जल्दी में भागे जा रहें हो। शे'र पेश करते हैं.. मुलाहिज़ा फ़रमाइयेगा।
- इरशाद.. इरशाद..! जल्दी बको और दुबारा आगे रस्ता मत रोकना।
यार! कसम से बहुते मूड बनाके आये है.. कुछ भी हो जाएं आज गुलाब तो देकर ही मानेंगे।
- हाँ-हाँ तो हम कब मना किये है मत दो। देखो तुम्हारे साथ भी तो आये है.. तुम्हारे लिए बैक-अप बनके।
हाँ तो अब शे'र सुनो-
उनसे इश्क़ है तो तुम उनके कूचे जाओ
हमहूँ ख़ूब कूचे गए है, तुमहूँ कूचे जाओ।
हीहीहीही.. हीहीहीही.. हीहीहीही।
भाग साले, हरामी। ढ़ंग से भी कभी कुछ बोल लिया कर।
-अच्छा ये बता वो तुमको देखकर मना कर दे तो? तब क्या करोगे। अबे अब इतना ज्यादा जोर से मत दबाओ.. फूलवा को.. हमारी पहचान है दुकानदार से कुछ लेस करके पूरा पैसा वापस करवा देंगे। मग़र ऐसे मुफ़्त में नहीं.. शाम के समोसे तुम खिलाओगे और कोल्ड-ड्रिंक भी।
भाई! ये मेरी गलती है.. मैंने तुझे बताया ही क्यूं था और तो और साथ भी लेकर आया हूँ.. भुगतना तो अब पड़ेगा ही।
-छींछीं! ऐसी बातें नहीं करते भाई। और अपने कलाइ पर तो देख.. मैंने जो फ्रेंड़शिप बैंड बांधा है.. धूप की रोशनी में आकर कैसे निखर गया है। कितना प्यारा लग रहा है?
-भाई! अब एकदम चुप। देख उसका गली आ गया है। अब तू कुछ नहीं बोलेगा और तू यही रुक मैं उसे गुलाब देकर आता हूँ। और सुन किसी को गली में आने मत देना.. जबतक मैं आ नहीं जाऊँ, कुछ समझा?
-क्या? कुछ बोला क्या तुमने?
अच्छा काम हो गया तो शाम को पिक्चर पक्का।
-अरे.. जा तू भाई! एक परिंदा भी इधर से उधर पर नहीं मारेगा।
10 मिनट बाद..
अबे भाग! भाग.. जल्दी भाग।
-अबे क्या हुआ.. बोस डीके?
भाग.. भाग।
पीछे से ईंटें हवा में आती दिखाई दीं.. तो दोनों की रफ़्तार तेज हो गई। थोड़ी देर बाद जब शोर कम हुई तो दोनों रुककर हाँफ़ने लगे।
अबे का हुआ थे बे उहाँ?
-का बताएँ, हम गुलाब बढ़ा के दिए तो वो शर्मां के बार-बार आँखें नीचे कर ले। अब हम इसी उल-जुलूल में उलझे थे कि उसका बाप ऊपर से हमको ताड़ रहा था। एकबेएक जब हमारा नज़र मिला.. हम तो पहले हड़बड़ा गए फिर आराम से मुस्कुराएँ और इनको देखा तो वो अभी भी शर्मां ही रही थी।
ग़ुस्से में आकर दिया कंटाप पर एक जोर से और जबरदस्ती गुलाब पकड़ा दिया.. देखा तो वो ज़मीन पर दूर जाकर बैठ गई है।
फिर उसके बाद उसके बाप ने ऐसा हो-हल्का मचाया कि मुहल्ले के सारे लोग पत्थर लेकर पीछे पड़ गए। दे पत्थर.. दे पत्थर.. मारा भाई बहुत चोटें आई हैं। मगर बस इस बात की भी खुशी है कि किसी ने पहचाना नहीं.. ये तेरा मुँह पर तौलिया बाँधने वाला आइडिया क़माल का निकला।
-साले! हम पहिले ही मना किये थे कि उसके घर के लोग आम आदमी नहीं है। सब साले रावण के ख़ानदान के हैं, तुझपर तो जाने क्यूं रहम दिखाई वरना उन्होंने तो बस चाकू-छुरे चलाकर मारे थे इससे पहले। हीहीहीही.. हीहीहीही.. हीहीहीही।
हें सच में? आह!
- और नहीं तो क्या? और बेटा एक और ज्ञान की बात धर ले.. मुझे ख़त लिखता देखकर पूछ रहा था ना कि अबे गंवार ई का कर रहा है बे?
तो बेटा सुन.. मैं आज भी ख़त इसलिए लिखता हूँ क्योंकि उसके पास चाहते हुए भी मैं कोई गुलाब नहीं पहुंचा सकता।
- भाई तू टेंशन मत ले। शाम की पिक्चर पक्की है.. तेरी दोस्ती के नाम एकदम मुफ़्त.. पर समोसे तू खिलायेगा।
- हीहीहीही.. हीहीहीही.. मंज़ूर।
नितेश वर्मा
#HappyFriendshipDay
- इरशाद.. इरशाद..! जल्दी बको और दुबारा आगे रस्ता मत रोकना।
यार! कसम से बहुते मूड बनाके आये है.. कुछ भी हो जाएं आज गुलाब तो देकर ही मानेंगे।
- हाँ-हाँ तो हम कब मना किये है मत दो। देखो तुम्हारे साथ भी तो आये है.. तुम्हारे लिए बैक-अप बनके।
हाँ तो अब शे'र सुनो-
उनसे इश्क़ है तो तुम उनके कूचे जाओ
हमहूँ ख़ूब कूचे गए है, तुमहूँ कूचे जाओ।
हीहीहीही.. हीहीहीही.. हीहीहीही।
भाग साले, हरामी। ढ़ंग से भी कभी कुछ बोल लिया कर।
-अच्छा ये बता वो तुमको देखकर मना कर दे तो? तब क्या करोगे। अबे अब इतना ज्यादा जोर से मत दबाओ.. फूलवा को.. हमारी पहचान है दुकानदार से कुछ लेस करके पूरा पैसा वापस करवा देंगे। मग़र ऐसे मुफ़्त में नहीं.. शाम के समोसे तुम खिलाओगे और कोल्ड-ड्रिंक भी।
भाई! ये मेरी गलती है.. मैंने तुझे बताया ही क्यूं था और तो और साथ भी लेकर आया हूँ.. भुगतना तो अब पड़ेगा ही।
-छींछीं! ऐसी बातें नहीं करते भाई। और अपने कलाइ पर तो देख.. मैंने जो फ्रेंड़शिप बैंड बांधा है.. धूप की रोशनी में आकर कैसे निखर गया है। कितना प्यारा लग रहा है?
-भाई! अब एकदम चुप। देख उसका गली आ गया है। अब तू कुछ नहीं बोलेगा और तू यही रुक मैं उसे गुलाब देकर आता हूँ। और सुन किसी को गली में आने मत देना.. जबतक मैं आ नहीं जाऊँ, कुछ समझा?
-क्या? कुछ बोला क्या तुमने?
अच्छा काम हो गया तो शाम को पिक्चर पक्का।
-अरे.. जा तू भाई! एक परिंदा भी इधर से उधर पर नहीं मारेगा।
10 मिनट बाद..
अबे भाग! भाग.. जल्दी भाग।
-अबे क्या हुआ.. बोस डीके?
भाग.. भाग।
पीछे से ईंटें हवा में आती दिखाई दीं.. तो दोनों की रफ़्तार तेज हो गई। थोड़ी देर बाद जब शोर कम हुई तो दोनों रुककर हाँफ़ने लगे।
अबे का हुआ थे बे उहाँ?
-का बताएँ, हम गुलाब बढ़ा के दिए तो वो शर्मां के बार-बार आँखें नीचे कर ले। अब हम इसी उल-जुलूल में उलझे थे कि उसका बाप ऊपर से हमको ताड़ रहा था। एकबेएक जब हमारा नज़र मिला.. हम तो पहले हड़बड़ा गए फिर आराम से मुस्कुराएँ और इनको देखा तो वो अभी भी शर्मां ही रही थी।
ग़ुस्से में आकर दिया कंटाप पर एक जोर से और जबरदस्ती गुलाब पकड़ा दिया.. देखा तो वो ज़मीन पर दूर जाकर बैठ गई है।
फिर उसके बाद उसके बाप ने ऐसा हो-हल्का मचाया कि मुहल्ले के सारे लोग पत्थर लेकर पीछे पड़ गए। दे पत्थर.. दे पत्थर.. मारा भाई बहुत चोटें आई हैं। मगर बस इस बात की भी खुशी है कि किसी ने पहचाना नहीं.. ये तेरा मुँह पर तौलिया बाँधने वाला आइडिया क़माल का निकला।
-साले! हम पहिले ही मना किये थे कि उसके घर के लोग आम आदमी नहीं है। सब साले रावण के ख़ानदान के हैं, तुझपर तो जाने क्यूं रहम दिखाई वरना उन्होंने तो बस चाकू-छुरे चलाकर मारे थे इससे पहले। हीहीहीही.. हीहीहीही.. हीहीहीही।
हें सच में? आह!
- और नहीं तो क्या? और बेटा एक और ज्ञान की बात धर ले.. मुझे ख़त लिखता देखकर पूछ रहा था ना कि अबे गंवार ई का कर रहा है बे?
तो बेटा सुन.. मैं आज भी ख़त इसलिए लिखता हूँ क्योंकि उसके पास चाहते हुए भी मैं कोई गुलाब नहीं पहुंचा सकता।
- भाई तू टेंशन मत ले। शाम की पिक्चर पक्की है.. तेरी दोस्ती के नाम एकदम मुफ़्त.. पर समोसे तू खिलायेगा।
- हीहीहीही.. हीहीहीही.. मंज़ूर।
नितेश वर्मा
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