Monday, 5 September 2016

जाने वो कौन थी

शाम हो चुकी थीं.. रात ने भी अब दस्तक दे दी थी। शहर की सारी बेताबियां को जैसे समुंदर ने खुद में समेट लिया हो। हवाएं हल्की शोरों के साथ बेबाकी से बहती चली जा रही थी। दिन भर की प्यास को मिटाने के लिये समुंदर के करीब पहुँचा तो देखा खुद समुंदर अपने सारे पानी को नाजाने किस नाराजगी से ख़ारा करके बैठा है। उससे असीम दरियाओं की प्यास बुझायी जा सकती है, मगर ऐसा लगता है किसी ने यहां आकर अपने सारे के सारे आँसू छिपा दिये हो और वो मूक उसे खुद में समेटकर पल-पल तिलमिला रहा हो।
अकसर जब कुछ नहीं होता है तो भी कुछ ना कुछ होता है, नज़र जब कुछ देखना ना चाहें फिर भी कुछ ना कुछ देख ही लेती है और जब आपकी जिन्दगी में मुहब्बत ना हो तो वो मुहब्बत भी ढूंढ ही लेती है ठीक वैसे ही किसी खामोश सी जगह कोई सिंसकी भी चली ही आती है। अभी समुंदर की लहरों को देखकर कुछ समझने की कोशिश मैं कर ही रहा था कि एक लड़की की रोने की आवाज़ आयी। वो खूबसूरत थी, जुल्फे घनी और बड़ी बड़ी आँखें जैसे एक बार में ही एक दरिया भर के आँसू को आँखों से बहा देती हो। जाने क्या मुझे उसके करीब खींच के ले गया शायद वो रो रही थी तो मेरा हमदर्द दिल उसे सँभालने चला गया हो या उसकी रोने की आवाज़ से उकता कर उसे दिलासा देने। बात जो भी हो मैं उसकी ओर खींचा चला जा रहा था। थोड़ी देर बाद मैं उसके करीब था, मैंने उससे पूछा - आप कौन है? और इस वक्त यहाँ बैठकर रो क्यूं रही है।
उसने मेरी बातों का कोई जवाब नहीं दिया बस उन बड़ी बड़ी आँखों को उठाकर मुझे बस देख भर लिया था, उन आँखों में आंसू कुछ ऐसे भरे थे कि अगर उन्हें वो गिरा दे तो पूरी की पूरी शहर उसकी बारिश में भींग जाती कमसेकम मुझे तो बिलकुल ऐसा ही लगता है। उसने अपने आँसूओं को पोंछते हुए कहा - रोने का भी कोई वक़्त होता है?
मैंने खुद को सँभालते हुए कहा - हाँ, बिलकुल होता है, आपको लगता है इसके बारे में किसी ने कभी बताया नहीं।
नहीं, सचमुच नहीं बताया किसी ने -उसने कहा।
क्यूं क्यूं नहीं बताया किसी ने, आप करती क्या हो? - मैंने पूछा
मेरा अपना कोई है ही नहीं, मैं तो अकेली हूँ इस दुनिया में। मुझे ये सब कौन बतायेगा? - उसने कहा।
इस दुनिया में कोई अकेला नहीं होता, ऊपरवाला किसी को भी अकेला नहीं रखता। बस कुछ लोग खुद ब खुद सबकुछ अपने आप से अलग कर देते है। - मैंने एक संजीदगी भरा जवाब दिया।
वो मुझे हैंरत भर के देख रही थी। फिर उसने कहा - वो मुझसे प्यार नहीं करता?
कौन कौन नहीं करता, आप तो माशाअल्लाह इतनी खूबसूरत है, मैं नहीं मानता.. शायद आप किसी गलतफ़हमी में है.. आपसे तो कोई भी प्यार कर सकता है आप तो इतनी खूबसूरत है। - मैंने एक साँस में ही भाव विभोर होकर सारी बातें कर दी।
फिर वो क्यूं नहीं समझता ये, हर रोज़ मैं उससे मिलना चाहती हूँ.. कुछ पूछना चाहती हूँ.. कुछ सुनाना चाहती हूँ.. मगर वो तो कभी आते ही नहीं। - उसने कहा।
हुम्मम! ऐसा क्या हुआ था.. आप दोनों के बीच? - मैंने गंभीर होकर पूछा।
पता नहीं, कुछ पता नहीं चलता। - उसने बड़ी बदतमीज होकर कहा।
कुछ देर मैं खामोश रहा और जब मुझे ये बात समझ में आ गयी की इंसान अकसर परेशानी में बदतमीज होकर कुछ कर गुजरता है तो फिर उससे दूबारा बात शुरू की।
तो आप मुझे बताइये आप परेशान क्यूं है। शायद मैं आपकी कुछ मदद कर सकूँ। - मैंने कहा।
नहीं, अब रहने दीजिए। अब कोई बात नहीं अब तो मैं संभलने भी लगीं हूँ। यहाँ रोज़ आना अच्छा लगने लगा है.. बस सुकून से दो पल रो लेती हूँ तो लगता है जैसे सदियों सदियों का बोझ सीने से उतर गया है। - उसने कहा।
इतनी छोटी उम्र और इतने बड़े बड़े एहसासात। किसी और ज़माने की लगती है आप। - मैंने थोड़ा मज़ाकिया होते हुए कहा।
उम्र का अनुभव से क्या मामला, अनुभव तो वक़्त कराता है। - उसने फिर एक बार खुद को संजीदा बतलाते हुए बताया।
चलिए! फिर कुछ ना सही, दोस्त ही बन जाते है। - मैंने बेशर्म होकर कहा।
मैं आपको जानती भी नहीं और ना ही आप मुझे, फिर ये पहचान क्यूं? - उसने पूछा।
पहचान नहीं है, इसलिये ही तो दोस्त बनाने को कहा। अंजानों से अकसर दोस्ती हो ही जाती है। - मैंने कहा।
नहीं! क्या पता कल से मैं यहाँ आ भी पाऊँ या नहीं.. कल से फिर कभी हम मिल पाएँ भी नहीं
.. क्या पता कल क्या लेकर आए? - उसने मेरी आँखों में देखकर कहा।
ऐसा कुछ नहीं होगा। - मैंने दिलासा दिलाया।
क्यूं फिर आप अपने घर नहीं जाऐंगे, जहाँ की दुनिया आपकी इंतजार कर रही है। आपके अपने तो हर रोज़ आपको बुलाऐंगे। - उसने तो जैसे कोई दबी बात कह दी हो और मैं बस हैरान होकर उसे देखता चला जा रहा था।
आप अपने अपनों का ख्याल कीजिए, सबको ये खुशी नहीं मिलती। कुछ लोग बहोत से खुशियों से ताउम्र महरूम ही रहते है। - उसने कहा।
मेरा इस दुनिया में कोई नहीं, इसलिये मैं अकसर किसी खुशी के माहौल में दुखी हो जाती हूं। - उसने कहा।
मैंने उसकी हाथों को अपने हाथों में थाम लिया ये कहते हुए - मैं हूँ ना।
वो कुछ देर खामोश रही फिर मेरी हाथों से अपनी हाथों को छुड़ाकर कहा, पर मैं किसी और की हूँ.. और वो एक बहती हवा के साथ गायब हो गयी।
मैं उसे देखता रहा.. और वो चली गयी, जाने वो कौन थी।

नितेश वर्मा 

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