महाभारत के युद्ध का वक़्त था। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के दलीलों से हारकर अपना विराट रूप दिखा चुके थे, अब मायूसी से पूरी दिन ना गुजरने के ख़ौफ़ से बचने के लिए भगवान ने बगल के ठेकेवाले से एक चाय उधार कर ली, और वही रथ एक तरफ़ लगाकर चाय पीने लगे। चिलचिलाती दोपहरिया और भगवान श्रीकृष्ण हताश होकर चाय पीये जा रहे थे। अर्जुन का मन यह देखकर द्रवित हो उठा, तभी एक तीर आकर अर्जुन के धनुष को उनसे अलग कर देता है। हताश व्यक्ति पहले ही एक ग़म से जूझ रहा होता है और ऊपर से ये सामाजिक प्रातनाएँ उसके स्वभाव को और भी आक्रामक बनाती रहती है। अर्जुन एक प्रार्थी के भाँति भगवान श्रीकृष्ण के सामने अपने घुटने को ज़मीन से टिकाकर दोनों हाथों को जोड़कर ज्ञान के मार्ग का माँग करने लगे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने चाय को एक तरफ़ किया, थोड़ी देर के राहत के लिए सूर्यदेव ने भी अपना तपिश कम किया। फ़िर भगवान श्रीकृष्ण रथ पर खड़े होकर अर्जुन को समझाने लगे- हे पार्थ! आज ये जो महाभारत हो रहा है उसके पीछे एक प्रयोजन है। पाप और पुण्य के बीच का ये संघर्ष है, नीति-अनीति के विरुद्ध ये युद्ध है, ये युद्ध स्त्रीयों के आत्म-सम्मान के लिए है, अपने हक़ के लिए है। इस युद्ध का हो जाना ही सही है, अग़र यह युद्ध यहाँ रूक गया तो सब अपने -अपने हक़ से वंचित रह जायेंगे।
हे पार्थ! एक दिन ऐसा भी आयेगा जब लोग निजी स्वार्थ के लिए ऐसे युद्ध करवाऐंगे। लाखों लाशें बिछाऐंगे और उनके चेहरे पर तनिक भी शर्मिंदगी नहीं रहेगी। ये कलयुग में सरकारी नेता या सरकारी समूह के नाम से जाने जाऐंगे। तो, हे पार्थ! मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ - तुम अपने कर्तव्य का पालन करो और इन सबको इस दुष्कर्म से मुक्त करो।
भगवान श्रीकृष्ण के इस ज्ञान को पाकर अर्जुन ने बगल के ठेकेवाले से दो चाय उधार लेकर पी और फ़िर अपने धनुष को लेकर युद्ध में अपनी युद्ध-कौशल दिखाने लगे। शाम तक भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के मुख पर एक अज़ीब शांति आकर बैठ गई थी। बस ज्ञान मात्र से कुरीतियों का नाश करके आज अर्जुन बहुत खुश थे और उनके बग़ल में खड़े भगवान श्रीकृष्ण मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। अब आकर चायवाले को भी यक़ीन हो गया था कि अर्जुन यह युद्ध जरूर जीत जायेंगे और जीतने के बाद सारी उधारी वापस हो जायेगी साथ में यह ज़मीन भी उसे मिल जायेगी। युद्ध का पहला दिन बीत गया और सब अपने-अपने शिवीर कक्ष में आराम करने को चले गए थे। बस, बारबरीक आज की जनता की तरह पूरी रात उस पहाड़ पर बीताता है, बस कल के शेष युद्ध को देखने के लिए।
जय श्रीकृष्ण।
नितेश वर्मा
हे पार्थ! एक दिन ऐसा भी आयेगा जब लोग निजी स्वार्थ के लिए ऐसे युद्ध करवाऐंगे। लाखों लाशें बिछाऐंगे और उनके चेहरे पर तनिक भी शर्मिंदगी नहीं रहेगी। ये कलयुग में सरकारी नेता या सरकारी समूह के नाम से जाने जाऐंगे। तो, हे पार्थ! मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ - तुम अपने कर्तव्य का पालन करो और इन सबको इस दुष्कर्म से मुक्त करो।
भगवान श्रीकृष्ण के इस ज्ञान को पाकर अर्जुन ने बगल के ठेकेवाले से दो चाय उधार लेकर पी और फ़िर अपने धनुष को लेकर युद्ध में अपनी युद्ध-कौशल दिखाने लगे। शाम तक भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के मुख पर एक अज़ीब शांति आकर बैठ गई थी। बस ज्ञान मात्र से कुरीतियों का नाश करके आज अर्जुन बहुत खुश थे और उनके बग़ल में खड़े भगवान श्रीकृष्ण मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। अब आकर चायवाले को भी यक़ीन हो गया था कि अर्जुन यह युद्ध जरूर जीत जायेंगे और जीतने के बाद सारी उधारी वापस हो जायेगी साथ में यह ज़मीन भी उसे मिल जायेगी। युद्ध का पहला दिन बीत गया और सब अपने-अपने शिवीर कक्ष में आराम करने को चले गए थे। बस, बारबरीक आज की जनता की तरह पूरी रात उस पहाड़ पर बीताता है, बस कल के शेष युद्ध को देखने के लिए।
जय श्रीकृष्ण।
नितेश वर्मा
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