Monday, 5 September 2016

लाइसेंस

उस दिन शाम कुछ ज्यादा ही लम्बी हो गई थी। रोजे का वो आखरी दिन था, हमज़ा आज कैसे भी करके जल्दी घर पहुंचना चाहता था, मग़र उसके मालिक ने उसे सख़्त हिदायत दी थी कि वो चाहे कुछ भी करे आज शाम तक उसे ये काम ख़त्म करना ही होगा। काम कुछ उतना बड़ा भी नहीं था, ये काम तो हमज़ा 17 सालों से कर रहा था, जब वह 7 साल का था तो अपने अब्बू के साथ यहाँ पत्ते बनाने आया था। इस काम में हमज़ा माहिर था, मग़र अक़सर इंसान सबकुछ समझते-जानते हुए भी मूक बन जाता है, ठीक वही हाल आज हमज़ा का था। रोजे में आये दिन गर्मी बढ़ने लगती है, इफ़्तार का बंदोबस्त भी करना कोई आसान काम नहीं होता। हमज़ा के अब्बू पत्ते बनाते-बनाते कब तम्बाकू के आदी हो गए ये उन्हें भी नहीं पता था। हमज़ा इस रोजे के दिन में भी भर दिन मज़ूरी करता और शाम को जो पैसा मिलता उसे हर सप्ताह घर को भिजवा देता। उसके अब्बू की हालत दिन-ब-दिन गिरती चली जा रही थी और इधर इस काम को दिन-रात एक करके भी करने पर उतनी भी तनख़्वाह नहीं मिलती जिससे उसके घर का भी ख़र्च चले। हमज़ा इस रोज़ कुछ ज्यादा ही परेशान चल रहा था.. कारण उसकी मुहब्बत इल्मा थी, जो हमज़ा से बेइंतहा मुहब्बत करती थी। कुछ दिनों पहले इल्मा का एक ख़त आया था उसमें उसने लिखा था - हमज़ा अब गाँव में कुछ रहा नहीं, ना ही तुम यहाँ हो और ना ही मुझे कोई समझने वाला। घरवालों ने दूर के एक रिश्तेदार के बेटे से मेरी मंगनी तय कर दी है और साथ-साथ ये हिदायत भी दी है कि मैं तुम्हें भूल जाऊँ। क्या मैं तुम्हें भूल जाऊँ? क्या किसी को प्यार करना और फिर उसे भूलाना इतना आसान होता है। मेरे पास और कोई दूसरा चारा नहीं है, इसलिए मैंने सोचा है कि मैं ठीक मंगनी के दिन ख़ुदकुशी कर लू्ंगी। अग़र मैं तुमसे नहीं मिल पाई तो क्या मौत से जरूर मिल जाऊँगी। तुम्हारे इंतजार में मैं तब तक ख़ुद को ज़िंदा रखूँगी हो सके तो मुझे बचा लेना - तुम्हारी इल्मा।
हमज़ा पत्ते बनाता और सोचता रहता वो क्या करे। अपने अब्बू का इलाज कराएँ या यहाँ शह्र में एक झोपडी बनाकर अपने घरवाले को यहाँ ले आए या फ़िर उस ख़ानदानी महल से जाकर इल्मा को बचा लाए। इल्मा से उसका प्यार बस प्यार नहीं एक इबादत था, वो ख़ुदसे भी ज्यादा किसी को चाहता था तो वो इल्मा थी।
आज हमज़ा गाँव जाने वाला था, उसने इल्मा को अपने साथ शह्र लाने का सोच लिया था, मग़र कैसे? वो शह्र लाकर इल्मा को रखेगा कहाँ? अपने दो बहनों, अब्बू-अम्मी के ख़र्च के साथ क्या वो इल्मा का ख़र्च भी उठा पायेगा। हमज़ा मग़र इन सभी बातों को सोचना भी नहीं चाहता था, आगे जो होगा देख लेंगे के पुल को बांधकर वो गाँव पहुँचा और देर रात अपने परिवार के साथ इल्मा को लेकर शह्र आ गया।
कारखाने के एक साथी ने कुछ मदद की और उसे एक शह्र से दूर एक बस्ती में एक कमरा दिला दिया। कुछ दिनों बाद इल्मा के घरवाले उसे तलाशते उस बस्ती तक जा पहुंचे, मग़र इल्मा ने उनके साथ जाने को मना कर दिया। बस्तीवालों के सामने उनकी एक ना चली और फिर वो मन मसोसकर गाँव को चले गए।
धीरे-धीरे दिन बीतने लगे, कुछ दिनों बाद हमज़ा ने अपना एक छोटा सा कारखाना खोल लिया। मग़र अब्बू की हालत बदतर से बदतर होती जा रही थी, सुबह हमज़ा उनका इलाज़ करवाता और शाम को तम्बाकू खरीद के ले जाता। उनकी तड़प और ललक देखकर वो अंदर तक जा बैठता। लत ऐसी चीज़ है, अग़र वो किसी को पकड़ ले तो उसे उसके मरने पे ही छोड़ती है। समय बीता, अब्बू इंतकाल फ़रमा गए। हमज़ा ने हौसले से काम लिया, घर-कारखाने को संभाला और धीरे-धीरे फिर दिन बीतने लगे, अब कारखाना एक स्थायी रूप ले चुका था, दूर-दूर से लोग हमज़ा से व्यापार साझा करने लगे। परंतु, ख़ुदा के मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती, एक दिन हमज़ा व्यापार के मामले में शह्र से बाहर जा रहा था तो कुछ लोगों ने रास्ते में उसे घेर लिया और उससे उसकी सारी चीजों को छीन कर उसे मार दिया। इल्मा को इस वाकये को लेकर काफ़ी गहरा सदमा लगा और वो लगभग टूट सी गई। मग़र हमज़ा के गुजर जाने के बाद उसके परिवार का पूरा भार इल्मा के कंधों पर आ गया था और वो इससे मुकरना नहीं चाहती थी और इसमें कोई शर्मिंदगी की बात भी नहीं थी, वो हमज़ा के कारखाने को संभालने लगी और फ़िर धीरे-धीरे दिन सुधरने लगी। इल्मा ने हमज़ा के दोनों बहनों की रूख़सती भी कर दी, कारखाना फ़िर पुराने दिनों की तरह चलने लगा।
एक दिन शह्र के कमेटी वालों ने इल्मा को सभा में बुलाया और उसके इस व्यवसाय पर रोक लगाने को कहा। उनके माशरे में ऐसे औरतों का काम करना और हर रोज़ आगे बढ़ना नाज़ायज है, इसमें व्यवसाय के अंदर और भी कामों का मिलावट साफ़ लगता है।
इल्मा ने कमेटी वाले को कहा - लेकिन इसमें ग़लत क्या है? मैं अपने पति के व्यवसाय को संभाल रही हूँ उससे अपनी रोज़मर्रा को चला रही हूँ। क्या औरतों का बाज़ार में खड़ा होना ग़लत है क्या?
हाँ, बिलकुल ग़लत है, कल से हम आपका लाइसेंस कैंसल कर रहे आप जा सकती है। मग़र मैं इसके बाद क्या करूँगी? आप ऐसा नहीं कर सकते है।
आप बाज़ार से कमाइये, बैठ जाइये बाज़ार में जाकर, वहाँ कमाई भी ज्यादा होती है।
इल्मा ने कुछ नहीं कहा और चली गई।
अगले दिन दो ख़त आएँ, एक में कारखाने के लाइसेंस कैंसल की बात थी और दूसरे में देह व्यापार करने का लाइसेंस।

नितेश वर्मा

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