Monday, 5 September 2016

दास्तान-ए-दर्द: मीना कुमारी

मीना कुमारी.. एक अदाकारा.. एक लेखिका.. एक क़िस्सों की ज़ुबानी। ट्रेजडी क्वीन के नाम से मशहूर इस अदाकारा को ऊपरवाले ने एक साथ ही ग़म और खुशियों से ऐसे नवाज़ा था कि सब देखकर बस हैरान हो जाते थे।
मीना कुमारी का असली नाम मज़हबी था, घर पर लोग उन्हें मुन्ना बुलाते थे। बचपन बहुत ग़ुरबत में गुजरीं, उन्हें 4 साल के उम्र से ही फ़िल्मों में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट अभिनय करना पड़ा। घर में फ़ाँके-फ़ाँके की कमी रहती, पैसे की जुगत में माँ भी 2/3 दिनों के लिये रोटियां थोपकर कमाने चली जाती और वही मीना कुमारी को हरी मिर्च,नमक और प्याज़ से खानी पड़ती, इसलिए मीना कुमारी को तमाम उम्र बासी रोटी अच्छी लगी। घर में प्रेम-ख़िचाव नहीं रहा तो वो फिल्मी क़ैमरे की तरफ़ आकर्षित हो गईं।
मीना कुमारी जवान हो रहीं थीं, लेकिन वो अपने घर के लिए मशीन की तरह दिन-भर काम करती और बदले में उन्हें बासी रोटियां मिला करती और वो हर शाम अशर्फ़ियाँ उगला करती, इस तरह उनका बचपन मर गया। उनकी दो बहने थी ख़ुर्शिद और मधु.. ख़ुर्शिद शादी के बाद पाकिस्तान बस गई और इधर मीना के माँ-पिता में बनी नहीं वो दिन भर काम करके घर लौटती और इधर इनका झगड़ा शुरू हो जाता। मीना का दिल ये सब देखकर पत्थर हो गया। उन्हें तरह-तरह के पत्थरों को सहेजने का शौक हो गया, रात में पत्थरों को अपने साथ सुलाती और उनसे ही बातें करती। जब उन्हें लगा कि ये पत्थर उनके दर्द से नहीं पिघलते तो उन्होंने अपनी ज़ज्बातों को काग़ज पर उकेरना शुरू कर दिया। छोटी-छोटी नज़्में, शायरी और कहानियाँ लिखने लगी, इसी बीच माँ गंभीर रूप से बीमार पडी और इस दुनिया से वो चल बसीं।
फ़िल्म अलाउदीन का चिराग़ करने पर उन्हें दस हज़ार रुपये मिले और उन्होंने उससे अपनी पहली कार खरीदी और उससे पूरे मुंबई का सैर कर डाला।
मीना कुमारी जवान हो चुकी थी और इस उम्र में आकर वो कमाल अमरोही को दिल ही दिल से अपना मान बैठी थी। वो रात-रात भर बैठकर सोचा करती कि काश! कमाल से उनकी कभी मुलाक़ात हो जाएं और एक दिन कमाल ख़ुद उनके दरवाज़े पर पहुँच गए। वो उस वक्त अनारकली बना रहे थे और उन्हें एक अदाकारा की जरूरत थी और वो अदाकारा थी मीना कुमारी। वैसे तो कमाल मीना से उम्र में 15 साल बड़े थे मग़र मीना को इस बात की कोई फ़िक़्र नहीं थी। 14 अगस्त 1953 को उन्होंने अपने पिता के ख़िलाफ जाकर कमाल अमरोही से शादी कर ली और अगले ही दिन अपने पिता को एक ख़त लिखा-
बाबूजी
मैं आपका घर छोड़ आई हूँ। मेरे कपड़े और किताबें वहाँ हैं। जब सहूलियत हो तो भिजवा दे। मैं अपनी कार आपको कल तक भेज दूंगी। आपको आने-जाने में दिक्कत नहीं होगी। आपसे हाथ जोड़कर एक ही विनती है कृपया कमाल को दामाद मान लीजिए और तलाक़ की बात मन से निकाल दीजिए। कमाल आपको सलाम कहते है।
आपकी प्यारी बेटी
शादी के बाद मीना कुमारी की ज़िन्दगी जैसे बदल गई.. दिन में वो और कमाल काम करते, शाम में घर आकर घर साफ़ करते, रम्मी खेलते और रात में मूवी देखने जाते। मीना ने कमाल की पहली पत्नी और बच्चों को भी अपना बना लिया था।
एक बार फिर उनका घर उजड़ गया था। मीना डायरी लिखने लगी थी वो कभी ख़ुदको इसका ज़िम्मेवार ठहराती तो कभी कमाल को, फिर सबसे हारकर रब से इस नियति का शिकायत भी करती। मीना की डायरी से फिर एक मीना निकली जो पहली मीना से बिलकुल अलग थी, वो नाज़ के नाम से लिखा करती थी।
अगस्त 1964 से वो जुहू के एक बंगले में रहने लगी थी जहाँ उनके पास थी तन्हाई, शराब, शायरी और घना अँधेरा। वो उस वक्त अंदर तक टूट चुकी थी.. दिन-भर कमरे में ख़ुदको बंद करके रखती और शराब में डूबी रहती।
मीना कुमारी ने अपनी सारी डायरी गुलज़ार साहब को सौंप दी थी जिसे बहुत मेहनत के बाद गुलज़ार साहब ने उसे एक क़िताब का रूप दिया है - मीना कुमारी की शायरी। इसके लिए आपका बहुत शुक्रिया गुलज़ार साहब।
एक बार मीना कुमारी के ज्यादा शराब पीने से उनके मुँह से ख़ून की उलटियाँ होने लगी और वो बीमार पड़ गई.. डाक्टर ने इलाज किया फिर हिदायत दी- अब जब कभी मरना हो तो शराब पी लेना। मीना ने शराब छोड़ दी और एक नया शौक पान खाने का पकड़ लिया। शराब बंद हो चुकी थी वे दिन भर क़िताबे पढ़ती और डायरी लिखा करती। नया शौक नयी हवा.. वो दिन भर में 40-50 पान खा जाया करती और हर पान के बाद एक ठंडी ग्लास बर्फ से भरी पी जाती
पाक़ीज़ा को बनाने में फिर मीना और कमाल एक हुए। एक बार फिर से मीना की ज़िन्दगी में वही हँसीं.. वही उम्मीद की लहर दौड़ आई थी जिसे मीना अपने से कभी जुदा नहीं होने देना चाहती थी। पाक़ीज़ा के इस डायल्ग़ को क्या कभी भूलाया जा सकता है -
माफ़ कीजिएगा, इत्तेफ़ाकन आपके कमपार्टमेंट में चला आया था.. आपके पांव देखें.. बहुत हसीन है.. इन्हें ज़मीन पर मत उतारियेगा मैले हो जायेंगे।
मीना कुमारी ने अपने एक ख़त में यहाँ तक लिखा था कि मैं उन्हें कभी माफ़ नहीं करूँगी जिन्होंने मेरी और कमाल की शादी तुड़वाई।
25 मार्च 1971 को वो एकबएक बीमार हो गई
लोगों ने डाक्टर के पास जाने को कहा मीना होश में आ चुकी थी उन्होंने मना कर दिया और बोली.. की वो कल जायेंगी डाक्टर के पास। अगली सुबह उन्होंने अपनी बहन ख़ुर्शिद को बुलाया और पूछा कि - हमारे पास कितने रूपये है?
उनकी बहन ने कहा - 100₹
100₹ में क्या ख़ाक इलाज होगा मेरा और यह कहकर वो एकदम चुप हो गई।
और सोचने लगी ये क्या विडंबना है जो कभी लाखों रुपये दान कर देती थी आज उन्हीं के पास अपने इलाज के भी पैसे नहीं है। मीना कुमारी इस अवस्था में आकर यादों में खो चली थी.. एक के बाद एक उन्हें नजाने कितनी कही-अनकही.. गुजरीं-आपबीती याद आने लगी। कुछ क़िस्सों में मीना बताती है -
एक रात फ़िरदौस मेरे दरवाज़े पर आई और बोलने लगी तीन दिनों से कुछ नहीं खाया है कुछ खाने को मिल जाता तो.. मैंने उसे बिठाया खाना खिलाया।
अगले दिन वो ज़िद करने लगी कि मुझे कोई काम पर रख लो। मैं भी हारकर उसे अपने स्टूडियो में नौकरी पर रख लिया और नौकरी भी क्या थी स्टूडियो में वो मेरे पास खड़ी रहती थी। स्टूडियो के लोगों को परेशानी ना हो ये सोचकर मैंने उसे अपने पिता के घर रखवा दिया और देखिये तो दुस्साहस मेरे पिता फ़िरदौस से निक़ाह करने का सोचने लगे थे। मैंने सोचा जाने कौन से नक्षत्र में मैंने उसे अपने साथ रखने का सोचा, ख़ैर फ़िरदौस तो पराई थी।
मेरे अपने पैसों पर 25/30 परिवार पलते। चन्दन आते और ये देखकर कहते- क्या तुमने इतना बड़े कुनबे को पालने का ठेका ले रखा है, और मैं मुस्कुरा कर कहती- बचपन में एक-एक पैसों को तरसी हूँ किसी और का तरसना नहीं देख सकती।
एक भाई था रिश्ते में.. एक दिन आकर ज़िद करने लगा अपने स्टूडियो में कोई काम दिलवा दो। मैंने प्रोड्यूसर से बात की उसने 500₹ पर काम की बात की। मैंने सोचा मीना कुमारी का भाई 500₹ पर काम करेगा। मैंने अपना पर्स निकाला और 1500₹ देकर कहा आप उसे हर महीने 2000₹ दे देना बाक़ी का मैं आपको दे दूंगी, लेकिन उसे पता नहीं चलना चाहिए। लेकिन भाई ने तो इसका शुक्रिया तो दूर बल्कि ताना दिया था - बाईं जी, उस प्रोड्यूसर ने तो आपकी इज्जत भी नहीं रखी.. 2000₹ दिये.. मैंने ले लिए पर अगले बार से नहीं लूंगा कमसेकम दस हज़ार तो दिलवाओ।
एक वाक्या याद आ रहा है जब मीना कुमारी अस्पताल से जा रहीं थीं तो बाहर एक स्वीपर उन्हें देखकर दौड़के उनके पास गई और फिर लिपटकर उनसे फूट-फूट के रोने लगी। मीना कुमारी ने उसके सर पर हाथ रखा और उसे अपना पर्स दे दिया, उस पर्स में उनके जरूरी काग़जात और नक़द पैसे थे नजाने कितने। ऐसा था मीना कुमारी का दिल जो उस हालत में भी किसी को उदास नहीं कर सकती थी।
30 मार्च 1971 को रात-भर इंजेक्शन के कारण मीना कराहती रही.. कभी होश में तो कभी बेहोशी से।
31 मार्च की सुबह बदहवास से हुए कमाल सबसे कहते मेरी चंदा मुझसे दूर जा रही है कोई रोक लो उसे.. कोई रोक लो।
बाहर सेहरा बानो,गुलज़ार,कम्मो जैसे सैकड़ों फिल्मी सितारे मीना के ज़िन्दगी की दुआ कर रहे थे।
3:24 शाम को वो थोड़ी देर को होश में आई और फिर 3:35 में वो हमेशा-हमेशा के लिए हमें छोड़कर चली गई। 31 मार्च 1971 को मीना कुमारी हम सब से विदा ले गई।
और उनके विदा लेते ही पाक़ीज़ा ने वो लोकप्रियता हासिल की जो आज भी फिल्म जगत के लिए मील का एक पत्थर है। काश! मीना अपनी आँखों से ये मंज़र देख पातीं। मुंबई के रहमताबाद कब्रिस्तान में मीना और कमाल की कब्रें एक साथ है।
मीना अब हमारे पास नहीं है, लेकिन वो आज भी हमारे दिलों में हैं।

नितेश वर्मा 

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