Sunday, 26 July 2015

माँ और मैं

कभी खुद से भी टाइम निकाल लिया करो, बेफिजूल का सब लिखते रहते हो। इतना गर किसी और पर ध्यान दिया होता तो आज कुछ लायक होते, कहीं अच्छे पैसे मिल रहे होते। और कुछ का नहीं तो कम से कम मेरा तो सोचा होता, अब तुम छोटे नहीं रह गये जो तुम्हें सारी बातें सिखाई जाये। सब पूछते हैं, मैं क्या बोलूं। तुम्हारे साथ के आज सारे पता ना कहाँ तक पहुँच गए और तुम.. तुम्हारा तो कभी होश ही ठीक नहीं होता। तुम कल से एक काम करो ये लिखना-विखना छोड़कर आगे बढ़ने के बारे में सोचो, कुछ करो। और ये सेभ भी टाइम से किया करो, कुछ तो इंसानों के गुण सीखो और मुझे ये तुम्हारे बड़े बाल थोड़े भी पसंद नहीं कल इसे भी सही करवा लेना।अब मुझे देख क्या रहे हो, जो लिख रहे थे लिखो, एक दिन भर इतना काम रहता है और उपर से तुम।

मैं : माँ.. बस माँ बस, हो गया ना।

नितेश वर्मा

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