Sunday, 26 July 2015

बड़े घर

और इसमें मेरा हिस्सा भी है भाई, मैं बस अपना हिस्सा चाहता हूँ और कुछ नहीं। आज मुझे जरूरत आन पड़ी है, कल किसी दूसरे को भी आ सकती है। और मैं नहीं चाहता की मैं अपने हिस्से के लिये अपनों के साथ कोट-कचहरी करूँ।
रहमान के आँखों से आँसू इस तरह निकल पड़े, जैसे किसी सोये हुए ज्वालामुखी से एकदम लावा निकलता है। रहमान के दो बेटों में से एक, आजम जो शहर में रहमान के कारोबार को देखता था उसे तबाह कर आज उसी के सामने अपने घर को बेच के हिस्सा करने की बात कर रहा है। दरअसल आजम बुरी लतों का शिकार है, उसके इसी बर्ताव से तंग आकर रहमान ने उसे अपना कारोबार देखने के लिये शहर में भेज दिया था। मगर किसे पता था कि वो सुधरने की जगह सब कुछ बर्बाद कर देगा।
आज इस बड़े घर की हालत ऐसी है कि सँभाले नहीं सँभलतीं हैं। रहमान का छोटा बेटा साहिर रहमान के साथ ही रहता है और उसके साथ ही कुछ छोटे-छोटे कामों को करके गुजारा करता है, बात पहले जैसी नहीं है फिर भी जिन्दगी गुजर-बसर, खुश रहने के लिये काफी है। मगर ये घर भी अब नहीं रहेगा तो फिर, ये सोच-सोच के रहमान हताश हो जाता।
जैसे-तैसे करकें रहमान ने कुछ पैसे बाज़ार से उधार करकें आजम को दे दिया। और कहा कमज़र्फ आ इस पेपर पे साइन कर की अब तेरा इस घर में कोई हिस्सा नहीं है, तूने अपने बाप से अपने हिस्से को बेच कर एक रकम वसूल किया है। आज रहमान खुद के बनाये घर को फिर से एक भुगतान करकें खरीद रहा था।
आजम की लापरवाही अब रहमान, उसके छोटे बेटे साहिर और उसकी बहू इरम को भुगतनी हैं। बाज़ार से लिया कर्जा इतना ज्यादा है कि वह यहाँ की कमाई से नहीं उतारा जा सकता, इसी बात को समझकर साहिर शहर कमाने को चला जाता है। इरम और अपने बड़े घर की इज्जत को जिंदा रखने के लिये रहमान अपने काम को यही रखकर देखते हैं। रहमान सबको यही बताता है कि दोनों भाई शहर कमाने गये हैं, कारोबार बढ़ा रहे हैं। इधर साहूकारों का तकाजा हैं। इरम अपने पढे-लिखें होने के कारण उनकी कुछ मदद करना चाहती हैं, लेकिन रहमान का कहना है बड़े घर की औरतें ऐसा सोचती भी नहीं। इरम को आज तकलीफ होती हैं, ऐसा क्यूं होता हैं कि सिर्फ लड़के ही जिम्मेदार हुआ करते हैं, उन्हें इसका हक क्यूं ये सामाज देता है।
साहिर के भेजे पैसों से कर्ज़ का तो भुगतान हो जाता है मगर घर के भी तो खर्च होते हैं, जो बड़े घर मे बैठें रहतीं है उनकी भी तो जरूरतें होती हैं। अब इरम अपने लोगों को इस हालत में नहीं देख सकती और वैसे भी पर्दा चेहरे पे कब तक रहता है।
इरम आज अपने घर की इज्जत बुनने को निकलीं हैं, वो आज एक स्कूल में बच्चों को पढाने गयी है और रहमान ने उसे आज रोका भी नहीं क्योंकि वो जान गया है इज्जत काम करने से बनता है, वो औरत और मर्द में फर्क नहीं करता।

नितेश वर्मा

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