Monday, 2 March 2015

चाँद और ये चंद यादें [Chand Aur Ye Chand Yaadein]

चाँद को देखा तुमनें। आज़ कितना खूबसूरत लग रहा हैं।
नहीं तो, मुझे तो नहीं दिखा।
कोशिश करो, बालकनी में आकर देखों शायद दिख जायें। तुम्हें ये नेचर में कोई दिलचस्पीं नहीं हैं क्या? मुझे तो बहोत अच्छें लगतें हैं चाँद-सितारें, फूल-क्यारियाँ, सुबह-सांझ। नज़र आया?
हाँ मिला!
कैसा हैं?
गोल हैं। बादलों में छिपा था।
हाँ गोल ही होना हैं चौदहवीं का चाँद हैं चकोर थोडे ही ना होता है। वैसे चौदहवीं का चाँद खूबसूरत बहोत होता हैं, नज़र हटाना बहोत मुश्किल होता हैं।
कुछ कहोगी नहीं।
हाँ हुम्म!
क्या? हाँ हुम्म!
चाँद के बारें में?
हाँ, चाँद के बारें में ही कह दो।
रोज़ निकलता हैं।


नितेश वर्मा

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