Monday, 2 March 2015

ज़िन्दगी : आखिरी मोड पर [Zindagi: Aakhiri Mod Par]

अच्छा तो तुम्हें क्या लगता हैं?
कुछ नहीं, मैं तो ये भी नहीं जानता तुम किसकी बातें कर रही हो, अब जब प्यार उसनें किया और उसके घर वालें राज़ी ना हुएं तो उसका भागना एक हद तक लाजिम भी हैं। खैर मुझे खामाखाह इस मसलें में नही पडना मुझे और भी काम हैं।
अरे! वो अपनें साथ ही पढती थीं साथ ही रहती थीं उसकें इस काम से न जानें हमारी भी शहर में कितनी बदनामी हुई हैं, तुम्हें न-जानें ये सब दिखता क्यूं नहीं। तुम बिलकुल बदल गए हो, यूनिवर्सिटी में मैनें जिसे पहली नज़र में पंसद किया था जिसकी बातें सबसे अलग हुआ करती थीं आज़ वो ऐसी बातों को खामाखाह बता रहा हैं। उफ्फ़्फ़!
हाँ! तो तुम क्या चाहती हो मैं भी सिरफिरें की तरह यूं तरह-तरह की बातें किया करूं अब मेरी वो उम्र नहीं रह गयी। उम्र की आखिरी मोड पे रूका पडा हूँ। न-जानें कब रूखसत हो जाऊँ बातों से पेट नहीं भरता उसनें बातों का इतना ध्यान दिया होता तो कबकी मर गयी होती, बेटे-बेटियाँ होतें हुएं भी वो एक-एक चीज़ को तरसती रहीं हैं, अब तुम ही देख लो अगर मैं ना होता तो तुम्हारा क्या होता, बडी-बडी बातें करनें से कोई बडा नहीं होता। ज़िन्दगी बहोत बेइमान हो चली हैं और उसनें दुबारा साथ भी तो उसी का चाहां हैं जिसनें उसे ता-उम्र प्यार किया आज़-तक वो बस उसके लौट आनें के इंतजार में तन्हा जिन्दगी गुजार रहा था, और आज़ उसे वो खुशी मिल रही हैं तो मैं नाखुश हो जाऊँ, चलो तुम्हारें और तुम्हारें सामाज़ के डर से शरीक ना हुआ अब तो कम से कम मुझे अपनी नज़रों में इतना तो ना गिरनें दो।

नितेश वर्मा

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