Monday, 2 March 2015

पार्टी [Party]

और बताओ बोर तो नहीं हो रहें ना।
नहीं बिलकुल भी तो नहीं। आँफकोर्स हो रहा हूँ यार। ये बोरिंग सी तुम्हारी पार्टी और तुम्हें तो पता हैं ना मुझे कभी इनमें कोई इंट्रेस्ट ही नहीं रहा हैं। एक तो तुम्हारी ज़िद्द इतनी होती है
बातें ना बनाओ। मैं खूब जानती हूँ तुम्हारी इंट्रेस्ट परदें के पीछें का स्वांग अब इतनें बेरूख ना हुआ करो मुझसे। चले चलेंगे कुछ देरों में। मैं तुम्हारे लिये ड्रिंक भिजवाती हूँ।
सुनो! रहनें दो। उसकी कोई जरूरत नहीं। मैं ऐसे ही ठीक हूँ, बस तुम जल्दी करो।
हाँ-हाँ। बस पाँच मिनट।
फिर मैं गाडी में वेट करता हूँ।
अरे! तुम्हें तनिक भी चैंन नहीं, यहीं बैठ जाओगें कुछ और देर तो क्या हो जायेगा, बहोत शरीफ बननें की तुम्हें कोई जरूरत नहीं हैं मेरे दोस्तों के सामनें, वो सब तुम्हें अच्छें से जानती हैं।
हाँ, तभी तो कह रहा हूँ जल्दी चलो।

गोल-गप्पें [Gol-Gappe]

वो तो मेरी कोई बात सुनती ही नहीं, एक बार तुम कोशिश करके क्यूं नहीं देखती, प्लीज़।
वो मेरी क्यूं भला सुननें लगी, और तुम्हारें मामलें में वो बहोत बेरूख हो जाती हैं, हर बार की तरह इस बार भी कहीं ना वही डायलग चिपका दे। हाँ, तुम्हें उसकी बडी पडी रहती हैं अच्छा भी तो तुम्हें वो बहोत लगनें लगा हैं रोज़-रोज़ गोल-गप्पें खानें चली जाती हो। शर्म और दोस्ती के नातें तो तुमनें बिलकुल ही गवां दिये हैं। और न-जानें कितनी बकवासे जब-तक उसका दिल ना भर जायें।
यार! तुम ऐसा करोगी तो कैसे होगा। तुम उसकी बेस्ट फ्रेंड हो और तुम्हारी बातों को वो कभी अनदेखा नहीं करेगी।
मुझे तो ऐसा लगता हैं अब वो तुममें इंट्रेस्टेड नहीं रही। शायद
ये क्या कह रहीं हो तुम, ये सिला मिला हैं मुझे।
अब ओवर-रियेक्ट मत करो, मैनें तो बस गेस किया हैं।
अरे! ऐसे गेसेस मत किया करो तुम। मेरें हक में कुछ किया करों। मेरी ना सही इन गोल-गप्पों के खातिर।
भैया, रहनें दो। इन्हें खिलाओ। तुम्हारें ये सडें गोल-गप्पें तुम्हें ही मुबारक हो।
दीदी ऐसा तो ना कहिएं हमारें ठेलें का भी तो कुछु रेप्यूटेशन हैं। भैया का तो बातें अलग है, दिन-भर सडक की लडकियों पे गुजार देते हैं और शाम से मजनूं बन जातें हैं। मगर हैं बहुतें शरीफ।


नितेश वर्मा

चाँद और ये चंद यादें [Chand Aur Ye Chand Yaadein]

चाँद को देखा तुमनें। आज़ कितना खूबसूरत लग रहा हैं।
नहीं तो, मुझे तो नहीं दिखा।
कोशिश करो, बालकनी में आकर देखों शायद दिख जायें। तुम्हें ये नेचर में कोई दिलचस्पीं नहीं हैं क्या? मुझे तो बहोत अच्छें लगतें हैं चाँद-सितारें, फूल-क्यारियाँ, सुबह-सांझ। नज़र आया?
हाँ मिला!
कैसा हैं?
गोल हैं। बादलों में छिपा था।
हाँ गोल ही होना हैं चौदहवीं का चाँद हैं चकोर थोडे ही ना होता है। वैसे चौदहवीं का चाँद खूबसूरत बहोत होता हैं, नज़र हटाना बहोत मुश्किल होता हैं।
कुछ कहोगी नहीं।
हाँ हुम्म!
क्या? हाँ हुम्म!
चाँद के बारें में?
हाँ, चाँद के बारें में ही कह दो।
रोज़ निकलता हैं।


नितेश वर्मा

इमोश्नल अत्याचार [Emotional Atyachaar]

तुम्हें तो प्यार करना भी नहीं आता। बाहों में बाहें डाल घूम लेनें से कोई प्यार नहीं हो जाता। प्यार एक एहसास हैं मगर मुझे नहीं लगता हैं के कभी तुमनें इसे महसूस किया हो। यूं फिजूल की बातों में ज़िन्दगी गुजार दी और अब सवालें लिये मुँह उठायें खडे हो।
मैनें तुमसे कितनी बार कहा हैं यूं बात-बात पे मुझे ताना ना दिया करो, एक तो तुम्हारी ही ज़िद थीं की मैंनें चादर ना होतें हुएं भी अपनें पैरों को फैला दिया। अब मैं तुम्हें प्यार के नगमें सुनाऊँ या बच्चों के शौक को पूरा करूं। ऐसा नहीं होता जैसा तुम अपनें घर में देखती आई हो वैसे मुझ जैसे मध्य वर्गीय लडके के घर की यही हालात हैं कोई एक शौक पूरा करो तो एक छूट ही जाता हैं चाहें हम लाख कोशिशें या मिन्नतें क्यूं ना कर लें। और तुम्हें ही इतनी जल्दी थीं शादी की मैनें तो बस तुमसे प्यार किया था, इसके मुकम्मल की सोच तक मेरें जेहन में ना थीं। किसी भी बात में मैं तुम्हारें बराबर नहीं था। वो तो मैं खुशनसीब रहा जो तुमनें सबको नाकार कर मुझे अपनाया था, उसके लियें मैं आज-तक तुम्हारा शुक्र-गुजार हूँ।
कोई जरूरत नहीं मेरा ऐहसान मंद होनें को और मैनें तुमसे ऐसा कह भी क्या दिया हैं। मैनें तो बस इतना ही कहा था कोई मदद मेरें मायकें से आती हैं तो तुम उसे टाल क्यूं देते हो, वो मेरे अपनें हैं। मुझे ऐसी हालतों में देखकर वो परेशां होते हैं। अब तुम ही बताओं उन्हें मैं क्या कहूँ।
तुम ये समझती क्यूं नहीं अगर अगर मैंनें ये जता दिया की मैं तुम्हारी चंद जरूरतें पूरी नहीं कर सकता या फिर अपनें बच्चों के शौक को पूरा नहीं कर सकता तो तुम खुद की और अपनें सामाज़ के नज़रों में कितना शर्मिंदा होगी। तुमनें सबको ठुकरा कर मुझे अपनाया था और मैं यह कभी नहीं चाहूँगा की तुम्हें अपनें डिसिज़न पे शर्मिंदा होना पडे। खैर मैनें कभी ऐसा भी नहीं किया की जो तुमनें चाहा उसे ना दिलाया हो हाँ यकीनन कुछ देर होता हैं मग़र मैं ऐक्सट्रा वर्क कर उसे पूरा ज़रूर करता हूँ। और तो तुम्हें पता हैं जहां तुम्हारें घर वालें ने मुझे ना-पसंद किया तो मेरे घर वालें आज़-तक मुझसे तुम्हें लेकर नाराज़ हैं। और अब क्या बातें करूं क्या तुम्हें समझाऊँ। वहीं बातें फिर से और वहीं रातें फिर से, ये रोज़-रोज़ का नाशुक्रा होना।
चलों रहनें दो तुम अपनी सडी मुँह की सडी बातें, मुझे सुबह ज़ल्द उठना भी होता हैं। एक प्यार की बात भी करों तो इमोश्नल अत्याचार कर देते हो।

 नितेश वर्मा

ज़िन्दगी : आखिरी मोड पर [Zindagi: Aakhiri Mod Par]

अच्छा तो तुम्हें क्या लगता हैं?
कुछ नहीं, मैं तो ये भी नहीं जानता तुम किसकी बातें कर रही हो, अब जब प्यार उसनें किया और उसके घर वालें राज़ी ना हुएं तो उसका भागना एक हद तक लाजिम भी हैं। खैर मुझे खामाखाह इस मसलें में नही पडना मुझे और भी काम हैं।
अरे! वो अपनें साथ ही पढती थीं साथ ही रहती थीं उसकें इस काम से न जानें हमारी भी शहर में कितनी बदनामी हुई हैं, तुम्हें न-जानें ये सब दिखता क्यूं नहीं। तुम बिलकुल बदल गए हो, यूनिवर्सिटी में मैनें जिसे पहली नज़र में पंसद किया था जिसकी बातें सबसे अलग हुआ करती थीं आज़ वो ऐसी बातों को खामाखाह बता रहा हैं। उफ्फ़्फ़!
हाँ! तो तुम क्या चाहती हो मैं भी सिरफिरें की तरह यूं तरह-तरह की बातें किया करूं अब मेरी वो उम्र नहीं रह गयी। उम्र की आखिरी मोड पे रूका पडा हूँ। न-जानें कब रूखसत हो जाऊँ बातों से पेट नहीं भरता उसनें बातों का इतना ध्यान दिया होता तो कबकी मर गयी होती, बेटे-बेटियाँ होतें हुएं भी वो एक-एक चीज़ को तरसती रहीं हैं, अब तुम ही देख लो अगर मैं ना होता तो तुम्हारा क्या होता, बडी-बडी बातें करनें से कोई बडा नहीं होता। ज़िन्दगी बहोत बेइमान हो चली हैं और उसनें दुबारा साथ भी तो उसी का चाहां हैं जिसनें उसे ता-उम्र प्यार किया आज़-तक वो बस उसके लौट आनें के इंतजार में तन्हा जिन्दगी गुजार रहा था, और आज़ उसे वो खुशी मिल रही हैं तो मैं नाखुश हो जाऊँ, चलो तुम्हारें और तुम्हारें सामाज़ के डर से शरीक ना हुआ अब तो कम से कम मुझे अपनी नज़रों में इतना तो ना गिरनें दो।

नितेश वर्मा