Monday, 7 July 2014

हमारी अधूरी कहानी-3 [Hamari Aduri Kahani-3]

कहानी जारी हैं..

ना जानें मुझे ऐसा क्यूं लग रहा था जो कुछ भी हुआ और आगे होनें वाला हैं उसके पीछें सिर्फ़ मैं और मैं ही हूँ। किसे कुसूर-वार ठहराऊँ जिससे आज़-तक मैनें मुहब्बत का इज़हार किया हीं नहीं या फिर उसे जो मेरें बचपन का दोस्त हैं जिससे मैनें इतनी बडी सच्चाई छुपा रक्खी हो। अब कुछ समझ नहीं आता कब-तक इन झूठी मुस्कानों को चेहरें पे लिएं घूमता रहूँगा। मौत भी करीब नहीं अभी तो जवानी पर कदम रक्खा हैं, ये लोग सूसाइड कैसे कर लेते हैं। मैं भी इन हालतों से बचना चाहता हूँ। मैं भी मरना चाहता हूँ, क्या करू दोस्त की ज़िन्दगी की खुशी छींन भी नहीं सकता और अंज़लि के बगैर जी भी नहीं सकता।

पूरा फ़िल्मी माहौल बना हुआ हैं। ये फ़िल्मी राइटर भी ना, ना जानें कैसे-कैसे स्क्रीप्ट लिखतें रहतें हैं हर कहानी में दुखडा ही सुनाता हैं कभी आज़-तक कोई ऐसी फ़िल्म हैं जो उपाय ना सही जुगाड ही लगा दे इन सब मुश्किलों में नहीं ऐसा क्यूं करेंगें, पैसे जो ना ढेर कमानें है? खैर मैं भी कहा खोया चला जा रहा हूँ? जब दिल बेचैंन होता हैं तो शायद हो जाता हैं, अंज़लि नें बताया था कभी।

आज़ भी मुझे याद हैं हम-दोनों जब शाम में मिलें और वो अपनें शादी की बात मुझे बता रहीं थीं, मैं किसी सोच में डूब गया था। शायद वो मेरे प्यार से अंज़ान थीं, मैं उसका दोस्त हूँ इसलिए वो ये बात मुझे बताना चाहती हो या फ़िर और कोई वजह हो। उस-दिन कुछ खास दिमाग नहीं चला। मैं एक-दम सुन्न पडा था,बस उसका हाथ था जो मेरी हाथ में तो मैं ज़िंदा खडा था।

रोहन जब शिमला आया मैं उससे मिलनें गया ही नहीं पता ना मुझे क्या हो गया था। मैं उसे जानतें हुएं भी अपनें प्यार का दुश्मन समझ रहा था, उसी के वज़ह से ये सब कुछ हुआ था ऐसे ही ना जानें कितनें ख्याल जो दिल में घर किएं बैठें थें। रंज़िशें इतनी थीं की मैं बयाँ नहीं कर सकता। जिस दोस्त से मैं कभी इतना प्यार करता था वो आज़ उस दो-दिन के आई लडकी के लिए खराब हो गया था। सहीं कहतें हैं लोग इश्क में दिमाग खराब हो जाता हैं, तो फिर ये हमेशा लडकों के साथ क्यूं होता हैं? क्या लडकियाँ कभी प्यार नहीं करती?

मैं अपनी बदहाली के साथ जी रहा था और धीरे-धीरें अंज़लि को भूलानें की कोशिश कर रहा था। आखिर अकेला इंसान इन परिस्थितियों में कर भी क्या सकता हैं?

तभी अचानक मेरें मोबाइल पे एक नम्बर फ़्लैस हुआ नम्बर रोहन का था अभी शायद उनकी शादी को दो-दिन ही हुएं होगें। मैंनें ये सोचा शायद कोई काम होगा उठा ही लेता हूँ, फिर ये सोच के रूक गया कहीं कुछ हनीमुन का आइडिया पूछेगा तो मैं क्या कहूँगा। मेरे दिल के जख्मों को फिर से वो नासूर कर देगा, छोड देता हूँ। तब-तक फिर एक बार उसका नम्बर दूबारा से फ्लैस हो गया मैनें सोचा चल देखता हूँ काम की बात करेगा तो ठीक वर्ना और कुछ पूछेगा तो मैं ना कर ही दूँगा। इसमें इतना हिचकना क्या, दोस्त हैं वो मेरा मैनें ना जानें कितनी बार ना कहा हैं इस बार भी कह दूँगा। और मैं हनीमून के बारें में जानता ही क्या हूँ अभी तो मेरी शादी भी नहीं हुई।
तो मैनें फोन उठा लिया हैलो! हाँ बोल रोहन, कैसा हैं भाई?
ठीक हूँ। दूसरी तरफ़ से कुछ उखडे आवाज़ में रोहन नें कहा।

मैं रोहन को जानता था जब भी उसे किसी बात की परेशानी होती वो ऐसे ही बातें किया करता था ..
मैनें पूछा क्या बात हैं भाई कोई दिक्क्त हैं क्या अंज़लि से?
दिक्कत कैसी दिक्कत जब उससे शादी मेरी हुई ही नहीं तुझे तो पता होगा ही कहतें-कहतें वो कुछ रूक-सा गया फिर अचानक अच्छा तुझे कैसे पता होगा तू तो यहां था ही नहीं मैनें कित्ती बार ना जानें फोन मिलाया था तेरा फोन लग ही नहीं रहा था। फिर मैं परेशान वैसे ही तेरे घर गया तो आंटी ने बताया तू मुम्बई गया हुआ हैं, क्या काम था तेरा?

अभी मैं उसकी शादी ना होनें सा जितना हैरान था बता नहीं सकता दिल के कोनें में एक खुशी भी थी मुम्बई तो बस उसकी याद से दूर होनें का बहाना था। प्यार तो अब भी मैं उससे उतना ही करता था और जाँब का क्या हैं जाँब तो मैं शिमला में भी कर सकता था।
इन सभी ख्याली पुलावों को मैनें पकनें से रोका और रोहन से पूछा क्यूं यार ऐसा क्या हुआ?
अंज़लि तो बहोत ही अच्छी लडकी हैं तुझे तो वो पसंद भी थीं ना तूनें ही तो फोटों देखके बात को आगे बढाया था।
हाँ यार! पर इंकार उसे हैं तो अब क्या करें?
शादी के ऐन वक्त पे उसनें मना कर दिया और कहनें लगी अभी वो यें शादी नहीं कर सकती वो इसके लिए तैयार नहीं हैं। इस बात पे ड्रामा भी बहोत हुआ था।
पर अभी मैं बता नहीं सकता मैं पेन्सिल्वेनिया जा रहा हूँ अभी ऐयर-पोर्ट पर उस फ्लाइट का इंतज़ार ही कर रहा हूँ। दूसरी तर्फ़ से एक साँस में रोहन नें बोला।

और हाँ वो अंज़ली भी आस्ट्रेलिया जा रही हैं अपनें आगे की पढाई के लिए उसका स्काँलर-शीप आया हैं। रोहन की आवाज़ मुझे फिर से सुन्न कर कर दी थीं।

पर अब मैं कुछ खुश था उसकी शादी जो नहीं हुई थीं पर दिल अब भी बेचैंन था वो आस्ट्रेलिया में मेरा दोस्त पेन्सिलवेनिया और मैं मुम्बई में।

किसी अंज़ान मोड पे आके जैसे हमारी कहानी ठहर गई हो उसके बाद आज़ एक अरसां हो गया हैं दोनों मेरे दिल में आज़ भी बाकी हैं किसी पुरानी फ़िल्म के राजेश खन्ना और मधुबाला की तरह। शायद मैं भी उनके जेहन में कहीं ना कहीं जिंदा होऊँगा, पर यकीं से नहीं कह सकता, क्यूंकि उनसे अब कोई संपर्क जो ना रहा।

[यह कहानी मेरी कल्पनाओं पे आधारित हैं जिसका किसी के निजी ज़िन्दगी से कोई संबंध नहीं हैं। यदि ऐसा होता हैं तो वो उसे सिर्फ़ मात्र संयोग कहें।]

..नितेश वर्मा..

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