समीर सुबह-सुबह कहाँ चल दिया, तेरे पापा ने तुझे किसी काम के लिए आँफ़िस बुला रक्खा हैं, जाऐगा नहीं क्या?
माँ तेज़ी से घर से निकलती हुई मुझे बाहर जाता हुआ देख के कहती हैं।
मैं उनकों देखके मुस्कुरां के कहता हूँ, हाँ अभी तो सुबह हैं ना दोपहर में चला जाऊँगा और बाईक निकाल के आगें सडक की ओर रूख कर लेता हूँ।
आज़ तुम फ़िर लेट हो गए? [अंजली ने मेरी ओर देखके नाराज़गी में कहा]
मैंनें समझातें हुएं कहा: ट्रेफ़िक था।
अंजली मेरी इस बात पे मुस्कुरां दी, और बाईक की ओर आतें हुएं कहां: तुम भी कुछ भी बोलते हो, सुबह के 6 बजे कौन सा ट्रेफ़िक?
मैंनें बाईक को धीमी गति से आगे बढाता हुएं कहा मेरा घर कोई ट्रेफ़िक से कम थोडे ही ना हैं, तुम्हें तो बस दुनियांदारी की लगी रहती हैं। कभी मेरा भी हाल पूछ लिया करो, ना जानें किस गम, किस सदीं में जी रहा हूँ। मेरी सारी बनावटी भावुक बातों के सुनके अंजली कहती हैं: हाँ-हाँ बातें तो कोई तुमसे बनाना सीखें। जब भी अंज़ली ऐसी फ़िल्मी बातें करती मैं खुद को किसी हाल में ही आएं फ़िल्म का अभिनेता समझनें लगता।
अंजली: कहाँ खो गए मेरे घनचक्कर?
मैं [बेरूख होते हुएं] : अरे कुछ नहीं यार! मैं तो बस यूं ही [कहते हुएं मैंनें बाईक की गति को बढा दिया]
लो तुम्हारें घर का मोड आ गया अब मैं चलता हूँ [मैनें बाईक को एक साइड में धीमा करतें हुएं कहा]
अंजली बाईक से उतर-कर क्यूं तुम नहीं आ रहें हो क्या? साथ में काँफ़ी तो कम से कम पीतें जाओ।
मैं[शर्मातें हुएं]: नहीं फ़िर कभी ओके बाएं।
अंजली घर की ओर जानें लगी और मैं उसे देखता रहा, जब तक वो मेरे आँखों से ओझल ना हो गई।
अचानक मेरे पास तभी दो बुर्जुग गुजरें और मुझे बाइक एक साइड में खडा करके अंजली को देखता हुएं.. कहते हैं: पता ना इस देश का भविष्य क्या होगा शर्मा जी। नौजवानों को तो हुक्कमरानी से फ़ुरसत ही कहां हैं, जरा सा मौका मिल जाएं तो अपनी लैला की आँचल में घुस जाएं। कमबख्त कैसा जमाना आ गया हैं?
मैं[फ़िल्मी अंदाज में]: शर्मा जी! जरा हमारी भी सुनतें जाओ।
दोनों नें मेरी बातों को सुना और दौडतें हुएं मेरे पास आ गएं। मैंनें बाइक की मिरर में देखते हुएं कहां यहां से तीन गली छोड के चले जाओ आपकों अपनें घर के भी नाकारा, निकम्में नौजवान मिल जाऐंगें ठीक हैं ना या फ़िर विस्तार-पूर्ण समझाऊँ अंकल।
दोनों चुपचाप मेरी बात सुनकर मुझे देखते हुएं चले गएं जैसे मैं किसी फ़िल्म का विलेन होऊ।
फ़िर मैंनें बाईक सर्टाट करी और घर की तरफ़ चल दिया। घर पहूंचतें ही माँ नें फ़िर सवालों का पेड खडा कर दिया।
कहाँ गया था..? यें रोज़ सुबह-सुबह तू कहाँ चला जाता हैं..? पहले तो तेरी ये हालत नहीं थीं..? पता ना हे भगवान मेरे बेटे को क्या हो गया हैं..? जरूर मिश्राजी की बेटी ने कोई जादू-टोना किया हैं, शादी की उम्र हो चूकीं और उनकों कुछ पता ही नहीं। कहने पे और कहतें हैं अभी बी काँम ही तो किया हैं, अभी उम्र क्या हैं..? मैनें देखे हैं ना उसे ना जानें कितनें लफ़ंगे लडकों के साथ। हे भगवान उस चुडैल से मेरे बेटे को बचाओ..
मैं [जोर से चिल्लातें हुएं]: माँ तुम्हारा हो गया तो कुछ मिलेगा खानें को कितना बोलती..
मेरी बातें अधूरी ही रह जाती हैं तब-तक माँ रसोइयें से एक थाली लेते हुई मेरी तरफ़ चली आती हैं।
लेकिन इतनें पे भी वो चुप नहीं रहती और कुछ ना कुछ बोलती रहती हैं।
मैंनें तुझे कितनी बार समझाया हैं तू उससे बातें ना किया कर। मेरा बच्चा! आज मेरे साथ तू पंडीजी के पास चल। वो ही तुझे बस ठीक कर सकतें हैं।
मैं [माँ को समझातें हुएं जो खुद में व्यस्थ हैं]: माँ-माँ, माँ ऐसा कुछ भी नहीं हैं जैसा तुम सोच रहीं हो।
माँ[उसी परेशानी से मेरी तरफ़ देखते हुएं] फ़िर कैसा हैं? इसमें कुछ पता नहीं चलता, तु मेरी बातों को समझता क्यूं नहीं..
माँ की फ़िर वही पुरानी बातें शुरू हो इससें पहले मैंनें माँ को बता दिया जो मैं उन्हें बताना नहीं चाहता था..
माँ-माँ मैनें माँ को अपनी तरफ़ करतें हुएं कहाँ: माँ उसका नाम अंजली हैं। मैं उससे पहली बार अपनी बी काँम फ़ाइनल्स के इक्साम में रोड-क्रास के दौरान मिला था। वो भी शायद इक्साम ही दे के आ रही थीं। मैंनें उसे पहली बार वहीं देखा था। अब बस रहनें दो तुम्हें पता लग गया ना इसमें ऐसा-वैसा कुछ नहीं, जैसा की तुम हर-वक्त सोचती रहती हो।
माँ[अचरजता से] हेन्न्न्न! ऐसे कैसे बस मुझे तो कुछ पता ही नहीं हैं उसके बारें में जरा अच्छें से बता कौन हैं वो कहाँ रहती हैं परिवार-वालें कैसे हैं उसके और हाँ अपनी कास्ट की होनी चाहिएं वर्ना तेरे पापा कभी नहीं मानेंगें।
मैं [पूरी बदहाली से माँ की तरफ़ देखते हुएं] : ओए! रूक जाओ यहीं वैसा कुछ नहीं हैं वो बस मेरी फ़्रेन्ड हैं और बस फ़्रेन्ड। और इससे ज्यादा मैं कुछ चाहता भी नहीं।
माँ[मेज को साफ़ करती हुई बोली]: हाँ बेटे मुझे भी पता हैं मैं भी दुनियां देख रही हूँ फ़्रेन्ड के लिए आज कौन कितना करता हैं, खैर कोई बात नहीं जब तू ही कहता हैं तो मुझे पूरा भरोसा हैं तू ऐसा-वैसा कुछ नहीं करेगा।
कहानी अगली भाग में जारी रहेगी..
माँ तेज़ी से घर से निकलती हुई मुझे बाहर जाता हुआ देख के कहती हैं।
मैं उनकों देखके मुस्कुरां के कहता हूँ, हाँ अभी तो सुबह हैं ना दोपहर में चला जाऊँगा और बाईक निकाल के आगें सडक की ओर रूख कर लेता हूँ।
आज़ तुम फ़िर लेट हो गए? [अंजली ने मेरी ओर देखके नाराज़गी में कहा]
मैंनें समझातें हुएं कहा: ट्रेफ़िक था।
अंजली मेरी इस बात पे मुस्कुरां दी, और बाईक की ओर आतें हुएं कहां: तुम भी कुछ भी बोलते हो, सुबह के 6 बजे कौन सा ट्रेफ़िक?
मैंनें बाईक को धीमी गति से आगे बढाता हुएं कहा मेरा घर कोई ट्रेफ़िक से कम थोडे ही ना हैं, तुम्हें तो बस दुनियांदारी की लगी रहती हैं। कभी मेरा भी हाल पूछ लिया करो, ना जानें किस गम, किस सदीं में जी रहा हूँ। मेरी सारी बनावटी भावुक बातों के सुनके अंजली कहती हैं: हाँ-हाँ बातें तो कोई तुमसे बनाना सीखें। जब भी अंज़ली ऐसी फ़िल्मी बातें करती मैं खुद को किसी हाल में ही आएं फ़िल्म का अभिनेता समझनें लगता।
अंजली: कहाँ खो गए मेरे घनचक्कर?
मैं [बेरूख होते हुएं] : अरे कुछ नहीं यार! मैं तो बस यूं ही [कहते हुएं मैंनें बाईक की गति को बढा दिया]
लो तुम्हारें घर का मोड आ गया अब मैं चलता हूँ [मैनें बाईक को एक साइड में धीमा करतें हुएं कहा]
अंजली बाईक से उतर-कर क्यूं तुम नहीं आ रहें हो क्या? साथ में काँफ़ी तो कम से कम पीतें जाओ।
मैं[शर्मातें हुएं]: नहीं फ़िर कभी ओके बाएं।
अंजली घर की ओर जानें लगी और मैं उसे देखता रहा, जब तक वो मेरे आँखों से ओझल ना हो गई।
अचानक मेरे पास तभी दो बुर्जुग गुजरें और मुझे बाइक एक साइड में खडा करके अंजली को देखता हुएं.. कहते हैं: पता ना इस देश का भविष्य क्या होगा शर्मा जी। नौजवानों को तो हुक्कमरानी से फ़ुरसत ही कहां हैं, जरा सा मौका मिल जाएं तो अपनी लैला की आँचल में घुस जाएं। कमबख्त कैसा जमाना आ गया हैं?
मैं[फ़िल्मी अंदाज में]: शर्मा जी! जरा हमारी भी सुनतें जाओ।
दोनों नें मेरी बातों को सुना और दौडतें हुएं मेरे पास आ गएं। मैंनें बाइक की मिरर में देखते हुएं कहां यहां से तीन गली छोड के चले जाओ आपकों अपनें घर के भी नाकारा, निकम्में नौजवान मिल जाऐंगें ठीक हैं ना या फ़िर विस्तार-पूर्ण समझाऊँ अंकल।
दोनों चुपचाप मेरी बात सुनकर मुझे देखते हुएं चले गएं जैसे मैं किसी फ़िल्म का विलेन होऊ।
फ़िर मैंनें बाईक सर्टाट करी और घर की तरफ़ चल दिया। घर पहूंचतें ही माँ नें फ़िर सवालों का पेड खडा कर दिया।
कहाँ गया था..? यें रोज़ सुबह-सुबह तू कहाँ चला जाता हैं..? पहले तो तेरी ये हालत नहीं थीं..? पता ना हे भगवान मेरे बेटे को क्या हो गया हैं..? जरूर मिश्राजी की बेटी ने कोई जादू-टोना किया हैं, शादी की उम्र हो चूकीं और उनकों कुछ पता ही नहीं। कहने पे और कहतें हैं अभी बी काँम ही तो किया हैं, अभी उम्र क्या हैं..? मैनें देखे हैं ना उसे ना जानें कितनें लफ़ंगे लडकों के साथ। हे भगवान उस चुडैल से मेरे बेटे को बचाओ..
मैं [जोर से चिल्लातें हुएं]: माँ तुम्हारा हो गया तो कुछ मिलेगा खानें को कितना बोलती..
मेरी बातें अधूरी ही रह जाती हैं तब-तक माँ रसोइयें से एक थाली लेते हुई मेरी तरफ़ चली आती हैं।
लेकिन इतनें पे भी वो चुप नहीं रहती और कुछ ना कुछ बोलती रहती हैं।
मैंनें तुझे कितनी बार समझाया हैं तू उससे बातें ना किया कर। मेरा बच्चा! आज मेरे साथ तू पंडीजी के पास चल। वो ही तुझे बस ठीक कर सकतें हैं।
मैं [माँ को समझातें हुएं जो खुद में व्यस्थ हैं]: माँ-माँ, माँ ऐसा कुछ भी नहीं हैं जैसा तुम सोच रहीं हो।
माँ[उसी परेशानी से मेरी तरफ़ देखते हुएं] फ़िर कैसा हैं? इसमें कुछ पता नहीं चलता, तु मेरी बातों को समझता क्यूं नहीं..
माँ की फ़िर वही पुरानी बातें शुरू हो इससें पहले मैंनें माँ को बता दिया जो मैं उन्हें बताना नहीं चाहता था..
माँ-माँ मैनें माँ को अपनी तरफ़ करतें हुएं कहाँ: माँ उसका नाम अंजली हैं। मैं उससे पहली बार अपनी बी काँम फ़ाइनल्स के इक्साम में रोड-क्रास के दौरान मिला था। वो भी शायद इक्साम ही दे के आ रही थीं। मैंनें उसे पहली बार वहीं देखा था। अब बस रहनें दो तुम्हें पता लग गया ना इसमें ऐसा-वैसा कुछ नहीं, जैसा की तुम हर-वक्त सोचती रहती हो।
माँ[अचरजता से] हेन्न्न्न! ऐसे कैसे बस मुझे तो कुछ पता ही नहीं हैं उसके बारें में जरा अच्छें से बता कौन हैं वो कहाँ रहती हैं परिवार-वालें कैसे हैं उसके और हाँ अपनी कास्ट की होनी चाहिएं वर्ना तेरे पापा कभी नहीं मानेंगें।
मैं [पूरी बदहाली से माँ की तरफ़ देखते हुएं] : ओए! रूक जाओ यहीं वैसा कुछ नहीं हैं वो बस मेरी फ़्रेन्ड हैं और बस फ़्रेन्ड। और इससे ज्यादा मैं कुछ चाहता भी नहीं।
माँ[मेज को साफ़ करती हुई बोली]: हाँ बेटे मुझे भी पता हैं मैं भी दुनियां देख रही हूँ फ़्रेन्ड के लिए आज कौन कितना करता हैं, खैर कोई बात नहीं जब तू ही कहता हैं तो मुझे पूरा भरोसा हैं तू ऐसा-वैसा कुछ नहीं करेगा।
कहानी अगली भाग में जारी रहेगी..
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