तो अब आप आ क्यूं नहीं जाते, अब तो गुरु भी 22 होने को चला है।
मैं अभी नहीं आ सकता, अभी मुल्क की ऐसी हालत नहीं की मैं घर पर आकर बैठूं।
इसी मुल्क का हवाला आप पिछले 23 सालों से दे रहे हैं, उस वक्त.. मैं ब्याह के आयी थीं और अगले महीनें ही आपकी रवानगी हो गयी थीं।
हाँ, तो क्या उसके बाद मैं आया नहीं क्या, क्या उसके बाद कोई पैसे या खानें-पीने की कमी हुयीं।
हाँ, बहोत खूब आया करते थे आप। कितने बार तो आधे रास्ते से ही आपकी पुनः रवानगी हो जाती थीं और आते भी थें तो मुश्किल-बामुश्किल 2 से 4 रोज़। वो तो शुकर हैं भगवान का.. की एक तस्वीर अभी भी हाल के उपरी तख़्त पर आपकी टिकी हुयीं हैं.. जिसे देखकर हम माँ-बेटे सुकून भर के रह जाते हैं। अब ऐसी भी क्या देश सेवा की आप अपनें घर-परिवार का परित्याग कर दे।
सिर्फ पैसों की कमी ही ज़िन्दगी को परेशान नहीं करती। कुछ और भी पहलूएं होती हैं ज़िन्दगी में.. अपनों का मोह उनसे विच्छेद भी बहोत दुखद होता हैं। मगर शायद आप इस बात को कभी नहीं समझ पाऐंगे।
ऐसा कुछ नहीं हैं, मैं भी मोह की उसी आग में हर रोज़ जलता हूँ.. मगर क्या करू.. किस फर्ज़ से मैं मुँह मोडूं। अब तो उपरवालें से बस इतनी गुज़ारिश हैं की वो मुझे इतनी वक्त और अता करें जिनमें मैं अपनों की नाराज़गी दूर कर सकूं। मैनें मुल्की फ़र्ज़ तले और भी बहोत से फ़र्ज़ों से मुँह मोडा हैं.. उन्हें तकलीफ़ दी हैं।
अरे! आप ऐसा क्यूं बोलते है.. मैनें तो आपसे आज़ तक ऐसी कोई भी शिकायत नहीं की। बस कभी-कभी गला रूंध जाता हैं तो बरबस कोई कडी आवाज़ गले से नीचे उतर जाती हैं। फिकर तो बस मुझे गुरू की लगी रहती हैं, वो हर वक्त आपका ज़िक्र किया करता हैं। आपसे बहोत मुख़्तलिफ सा हैं वो, पता ना किस पेचेंदिगीयों में उलझा रहता है, शायद आप साथ होते तो कुछ किया जा सकता था। अभी कुछ रोज़ पहले.. बात कर रहा था कि वो आपकी तरह नहीं बनना चाहता.. वो तो अमेरिका जाकर अपनें अपनों के साथ खूब पैसा कमा के रहना चाहता हैं।
हे भगवान! तुमनें उसे समझाया नहीं कि उसके पापा भी एक बहोत अच्छें काम को करते है। उनके काम से ना केवल एक परिवार खुश होता हैं बल्कि पूरा का पूरा एक मुल्क चैनों-सुकून से साँसे लेता हैं। और कही बाहर जाकर कुछ करने से बेहतर हैं.. यही कुछ कर ले। मैं कुछ दिनों बाद उसके पास आ जाऊंगा फिर साथ में हम भी मिलकर बहोत-कुछ कर सकते हैं।
हुम्म्म! ठीक हैं, मैं कोशिश करती हूँ समझानें की। अग़र आप आ सके तो जरूर कुछ दिनों के लिये आये।
ठीक हैं, मैं कोशिश करूंगा लेकिन आना तुम ना के बराबर ही समझो।
गुरू तू कहाँ जा रहा हैं, कोई नयी ट्रिप हैं क्या तुम्हारी?
नहीं माँ, इस बार कोई ट्रिप नहीं हैं। मेरा अमेरिका का वीज़ा लग गया हैं, मैं अमेरिका जा रहा हूँ। बातें करता रहूँगा, मग़र आप मुझे रोकनें की अभी कोई कोशिश मत कीजियेगा। अब तक आप खामोश रही.. तो मेरे फ़ैसलों के दरम्यान भी ख़ामोश ही रहिये, मुझे खुशी होगी।
मग़र बेटा, मैं तुम्हारे पापा से क्या कहूँगी?
वहीं कुछ.. जो आप मुझसे मेरे पूछ्ने पर उनके लिये बताया करती हैं।
आर्शीवाद दीजिए, मैं अब शायद 3 साल के बाद आ पाऊंगा।
खुश रहो। ख़्याल रखना।
हाल ही में एक ख़बर मिली हैं की कुछ आतंकियो ने लाइन आफ कंट्रोल को क्रास करके भारतीय सीमा के अंदर घुस कर गोलाबारी शुरू कर दी हैं। लोगों की हालत बुरी हैं, इसमें कई जवान घायल तो कईयों ने देश के लिये बलिदान दे दिया हैं, फिर भी हालत मौजूदा वश में नहीं हैं। सरकार अभी चुप्पी साधे लोगों की मदद में जुटी हैं। सभी देशवासियों से अनुरोध हैं कि इस स्थिति में हौसला बनाएं रखे और एक-दूसरे की मदद करे।
रेडियों की न्यूज़ ने अब तक तो सरोज़ की हालत बुरी कर दी थीं, वो जल्दी से उठकर भगवान के पास दीप जलानें को भागी जैसे भगवान ही उसे बेसहारा होनें से बचा सकते हो। मगर कहते हैं ना जो नियति में होता हैं, उसे कोई बदल नहीं सकता। सबको अपनी तकलीफ़ खुद ही झेंलनी होती हैं, कोई किसी से ना तो किसी की खुशी को छींन सकता हैं और ना ही किसी की दर्द को उससे ले सकता हैं, जो जिसके नसीब में होता है उसे वो मिल ही जाता हैं।
सरोज़ की जलती दीप के साथ उसके हाल में रखी फोन की घंटी भी बजी। सरोज़ अब पूरी तरह हिल चुकी थीं उधर से बस यही आवाज़ सुन के सरोज़ बेहोश हो गयी थी कि- आइ एम सारी टू से, कर्नल अर्जुन सिंह इज़ नो मोर.. आइ एम रियली सारी..। हैलो.. हैलो.. मैम।
बात धीरें-धीरें बढी परिवार समाज़ इकठ्ठा हुआ। आंतकियों को पकड लिया गया था, स्थिति अब काबू में हो चुकीं थीं। सरोज़ की हालत अब पहले से कुछ सुधर चुकी थीं, उसने अपने-आप को वक्त के हिसाब से ढाल लेने में ही भलाई समझीं.. ग़म तो उसे बस इसी बात का रहा कि उसका अपना बेटा अपने पिता के मातम में आकर दो बूंद आंसू के ना बहा सका.. अपनी माँ को इस स्थिति में अकेला ही रहनें दिया। वो कभी खुद को इसकी वज़ह समझती तो कभी-कभी उसे अपनी परवरिश पर शक होने लगता, शायद उसने ही कोई कमी कर दी थीं।
माहौल से पीडित इंसान अकसर ख़ुद को किसी अंज़ाम की वज़ह मान लेता है, उसके पास शायद कहे तो और कोई विकल्प नहीं होता। अर्जुन सिंह को गुजरे आज़ 7 बरस हो चुके है, गुरू की कोई खबर नहीं हैं, जाते वक्त उसने जो नम्बर सरोज़ को थमाया था वो नम्बर तो कभी लगा ही नहीं.. ना ही गुरू की कोई खबर चलकर आयीं। अब तो उम्मीदी निराशा में बदल चुकी हैं, सरोज़ ने तो अब गुरू के आनें का इंतज़ार भी छोड दिया हैं.. मग़र कमबख़्त ये माँ की ममता हैं जो जाती ही नही.. अर्जुन सिंह जी के चले जानें के बाद अब उनका इस जहां में रह ही कौन गया एक गुरू के अलावा।
हैलो, माँ! माँ मैं गुरू.. गुरू बोल रहा हूँ।
गुरू.. गुरू कैसा हैं.. मेरा गुरू कहाँ हैं तू.. इतने दिनों से कहाँ था तू।
अए! फ़िलहाल तो मैं ऐयरपोर्ट पर हूँ, बस कुछ ही देर में आपके सामनें होऊंगा फिर आप अपने मज़ीद सारें सवाल कर लीजियेगा। ओके मैनें गाडी ले लीं हैं, अभी रखता हूँ और हाँ कुछ खानें को बना दीजियेगा मैं पूरे 1 दिन का भूखा हूँ।
और.. और बताइये यहाँ सब कैसा हैं?
हुम्म्म! सब ठीक हैं। तुम सुनाओ तुम क्या कर रहे हो अमेरिका में?
मैनें तो फ़िलहाल खुद की एक कंपनी स्टार्ट की हैं, छोटी सी हैं मग़र अपनी हैं। कुछ दिनों में भगवान ने चाहां तो सब बेहतर हो जायेगा, फिर इस बार वहाँ की माइग्रेशन की अप्लाई भी करनी हैं।
अच्छा हैं, बेहतर हैं। खुश रहो बेटा।
और बताएं – कर्नल साहब अभी भी अपनी देश-भक्ति निभा रहे हैं या अपनें कामों से फ़ारिग़ होकर आपके साथ रहनें लगे हैं।
ये कैसा सवाल हैं?
क्यूं, इसमें इतना गलत मैनें क्या पूछ लिया।
बेटा जो ज़िंदा नहीं होते हैं ना उनका मज़ाक नहीं बनाया करतें.. ना ही उन्हें ताना दिया करते हैं।
क्या? क्या मतलब है आपका! क्या हुआ पापा को।
तुम इतनी हैरानी क्या दिखा रहे हो.. क्या तुम्हें कुछ भी पता नहीं।
पहेलियां ना बुझाये, दिल भारी सा हुआ है मेरा।
तुम्हारे पापा अब इस दुनियां में नहीं रहें.. एक आतंकी हमले में वो शहीद हो गये, आज 7 बरस होनें को आये हैं ।
और आपनें मुझे बताना ठीक भी नहीं समझा, क्या मैं इतना बुरा हो गया था।
नहीं, मैनें तो नाजानें कितनी दफा तुमसे बात करनी चाहीं.. मगर जो तुमनें नम्बर मुझे दिया था वो तो कभी लगा ही नहीं।
माँ! आज़ मैं बहोत शर्मिंदा सा महसूस कर रहा हूँ। जिन यार-दोस्तों के भरोसें मैं अमेरिका गया था.. उन सभी ने मुझे धोखा दे दिया, मेरे पास तो वापस आनें तक के पैसे नहीं थें और मैं खाली हाथ वापस भी नहीं आना चाहता था। मैं खुद में इतना उलझ गया था की मुझे कभी अपनों का भी कोई होश नहीं आया और देखिये ना जब आया तो मेरे अपनें अब मेरे हाथ से छूट के चले गये।
मैनें अपनें पिता के लिये बहोत बदनेकियां पाली थीं, शायद यहीं इसकी सज़ा थीं.. कि मैं अपनें बाप के लाश को कांधे भी ना दे सका। मैं दौलत के नशे में चूर हो गया था.. मुझे अपनों की भी कोई परवाह नहीं रहीं।
बेटा! तुम्हारे पापा तुमसे बहोत प्यार करते थें.. वो चाहते थें वो यहां वापस आकर तुम्हारें साथ कोई नया बीज़नेस स्टार्ट करे.. वो चाहते थें जितनी दयारें-दिल खडी हुयीं हैं वो सब दूर हो जायें। शायद, रब को कुछ और मंज़ूर था। ख़ैर, अब देखों ना तुम कितने कामयाब हो.. वो जहाँ भी होंगे तुम्हें देखकर खुश ही होंगे। उनको कल भी तुम पर फ़ख्र था और आज़ भी हुआ होगा।
माँ, अब मैं कुछ बीते वक्त को नहीं बदल सकता मगर अब मुझे आपसे बस एक ही इल्तिज़ा हैं.. अब आप मुझसे मेरा हक ना छीनें। मुझसे आपकी ख़िदमती का हक अदा करने दे, आप मेरे साथ अमेरिका चले, वहाँ सारी चीज़ें मैनें बना रक्खी हैं। बस ना मत कहियेगा।
बेटा! अब क्या मेरा कहीं जाना। अब उम्र ही मेरी कितनी बची हैं, भगवान की रहमों-करम से तेरे पापा ने कुछ सेविंग्स कर रखें थे और तो और मेरे साथ सिया भी रहती हैं,, वो याद हैं तेरे कालेज़ की टापर।
वो अंकल प्रखर की बेटी? वो.. वो क्यूं..
अरे ऐसा नहीं बोलते बेटा, वो कितना ख्याल रखते हैं सब मेरा।
नहीं, मैं कुछ नहीं सुनूंगा.. आप मेरे साथ चलेंगी।
बेटा ज़िद मत करो, मैं नहीं चाहती की मैं उस मुल्क को छोडकर कहीं जाऊं जिसके लिये मेरे पति ने अपनी जान तक गँवा दी.. मैं उनकी मिल्कियत हूँ और मैं इन्हीं हवाओं में साँस लेते हुये चैन से गुजरना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ.. मैं जब तक जीऊँ उनकी यादों, उनकी खुशबुओं के साथ गुजारूं। शायद तुम्हें लगे मैं ज़ज्बाती हो गयी हूँ, मग़र अब मेरा भी दिल इस मुल्क को छोडकर जानें को कहीं नहीं करता।
हुम्म्म! तो फ़िर ठीक हैं माँ। अब मैं भी अपनी इस माँ को छोडकर कहीं नहीं जाऊंगा, आखिर अपनें बाप का बेटा हूँ.. अपनी माँ को छोडकर भला कहाँ जाऊंगा।
और तुम्हारा कारोबार?
कारोबार का कोई मसला नहीं हैं.. वो यहाँ भी शुरू किया जा सकता हैं। जितनी दूसरी मुल्क में मेहनत की हैं.. वही अगर मेहनत यहां करता तो कबका ये मकाम पा लेता और किसी भी बात का कोई गिंला ना होता।
आंटी, आपनें दवा ली। वो क्या हैं ना इतनी शापिंग करनी थीं कि मैं तो फँस ही गयी थी.. लगभग.. आंटी.. ये..
ये.. ये गुरू है, तेरा अरसों का इंतख़्वाब।
नितेश वर्मा
मैं अभी नहीं आ सकता, अभी मुल्क की ऐसी हालत नहीं की मैं घर पर आकर बैठूं।
इसी मुल्क का हवाला आप पिछले 23 सालों से दे रहे हैं, उस वक्त.. मैं ब्याह के आयी थीं और अगले महीनें ही आपकी रवानगी हो गयी थीं।
हाँ, तो क्या उसके बाद मैं आया नहीं क्या, क्या उसके बाद कोई पैसे या खानें-पीने की कमी हुयीं।
हाँ, बहोत खूब आया करते थे आप। कितने बार तो आधे रास्ते से ही आपकी पुनः रवानगी हो जाती थीं और आते भी थें तो मुश्किल-बामुश्किल 2 से 4 रोज़। वो तो शुकर हैं भगवान का.. की एक तस्वीर अभी भी हाल के उपरी तख़्त पर आपकी टिकी हुयीं हैं.. जिसे देखकर हम माँ-बेटे सुकून भर के रह जाते हैं। अब ऐसी भी क्या देश सेवा की आप अपनें घर-परिवार का परित्याग कर दे।
सिर्फ पैसों की कमी ही ज़िन्दगी को परेशान नहीं करती। कुछ और भी पहलूएं होती हैं ज़िन्दगी में.. अपनों का मोह उनसे विच्छेद भी बहोत दुखद होता हैं। मगर शायद आप इस बात को कभी नहीं समझ पाऐंगे।
ऐसा कुछ नहीं हैं, मैं भी मोह की उसी आग में हर रोज़ जलता हूँ.. मगर क्या करू.. किस फर्ज़ से मैं मुँह मोडूं। अब तो उपरवालें से बस इतनी गुज़ारिश हैं की वो मुझे इतनी वक्त और अता करें जिनमें मैं अपनों की नाराज़गी दूर कर सकूं। मैनें मुल्की फ़र्ज़ तले और भी बहोत से फ़र्ज़ों से मुँह मोडा हैं.. उन्हें तकलीफ़ दी हैं।
अरे! आप ऐसा क्यूं बोलते है.. मैनें तो आपसे आज़ तक ऐसी कोई भी शिकायत नहीं की। बस कभी-कभी गला रूंध जाता हैं तो बरबस कोई कडी आवाज़ गले से नीचे उतर जाती हैं। फिकर तो बस मुझे गुरू की लगी रहती हैं, वो हर वक्त आपका ज़िक्र किया करता हैं। आपसे बहोत मुख़्तलिफ सा हैं वो, पता ना किस पेचेंदिगीयों में उलझा रहता है, शायद आप साथ होते तो कुछ किया जा सकता था। अभी कुछ रोज़ पहले.. बात कर रहा था कि वो आपकी तरह नहीं बनना चाहता.. वो तो अमेरिका जाकर अपनें अपनों के साथ खूब पैसा कमा के रहना चाहता हैं।
हे भगवान! तुमनें उसे समझाया नहीं कि उसके पापा भी एक बहोत अच्छें काम को करते है। उनके काम से ना केवल एक परिवार खुश होता हैं बल्कि पूरा का पूरा एक मुल्क चैनों-सुकून से साँसे लेता हैं। और कही बाहर जाकर कुछ करने से बेहतर हैं.. यही कुछ कर ले। मैं कुछ दिनों बाद उसके पास आ जाऊंगा फिर साथ में हम भी मिलकर बहोत-कुछ कर सकते हैं।
हुम्म्म! ठीक हैं, मैं कोशिश करती हूँ समझानें की। अग़र आप आ सके तो जरूर कुछ दिनों के लिये आये।
ठीक हैं, मैं कोशिश करूंगा लेकिन आना तुम ना के बराबर ही समझो।
गुरू तू कहाँ जा रहा हैं, कोई नयी ट्रिप हैं क्या तुम्हारी?
नहीं माँ, इस बार कोई ट्रिप नहीं हैं। मेरा अमेरिका का वीज़ा लग गया हैं, मैं अमेरिका जा रहा हूँ। बातें करता रहूँगा, मग़र आप मुझे रोकनें की अभी कोई कोशिश मत कीजियेगा। अब तक आप खामोश रही.. तो मेरे फ़ैसलों के दरम्यान भी ख़ामोश ही रहिये, मुझे खुशी होगी।
मग़र बेटा, मैं तुम्हारे पापा से क्या कहूँगी?
वहीं कुछ.. जो आप मुझसे मेरे पूछ्ने पर उनके लिये बताया करती हैं।
आर्शीवाद दीजिए, मैं अब शायद 3 साल के बाद आ पाऊंगा।
खुश रहो। ख़्याल रखना।
हाल ही में एक ख़बर मिली हैं की कुछ आतंकियो ने लाइन आफ कंट्रोल को क्रास करके भारतीय सीमा के अंदर घुस कर गोलाबारी शुरू कर दी हैं। लोगों की हालत बुरी हैं, इसमें कई जवान घायल तो कईयों ने देश के लिये बलिदान दे दिया हैं, फिर भी हालत मौजूदा वश में नहीं हैं। सरकार अभी चुप्पी साधे लोगों की मदद में जुटी हैं। सभी देशवासियों से अनुरोध हैं कि इस स्थिति में हौसला बनाएं रखे और एक-दूसरे की मदद करे।
रेडियों की न्यूज़ ने अब तक तो सरोज़ की हालत बुरी कर दी थीं, वो जल्दी से उठकर भगवान के पास दीप जलानें को भागी जैसे भगवान ही उसे बेसहारा होनें से बचा सकते हो। मगर कहते हैं ना जो नियति में होता हैं, उसे कोई बदल नहीं सकता। सबको अपनी तकलीफ़ खुद ही झेंलनी होती हैं, कोई किसी से ना तो किसी की खुशी को छींन सकता हैं और ना ही किसी की दर्द को उससे ले सकता हैं, जो जिसके नसीब में होता है उसे वो मिल ही जाता हैं।
सरोज़ की जलती दीप के साथ उसके हाल में रखी फोन की घंटी भी बजी। सरोज़ अब पूरी तरह हिल चुकी थीं उधर से बस यही आवाज़ सुन के सरोज़ बेहोश हो गयी थी कि- आइ एम सारी टू से, कर्नल अर्जुन सिंह इज़ नो मोर.. आइ एम रियली सारी..। हैलो.. हैलो.. मैम।
बात धीरें-धीरें बढी परिवार समाज़ इकठ्ठा हुआ। आंतकियों को पकड लिया गया था, स्थिति अब काबू में हो चुकीं थीं। सरोज़ की हालत अब पहले से कुछ सुधर चुकी थीं, उसने अपने-आप को वक्त के हिसाब से ढाल लेने में ही भलाई समझीं.. ग़म तो उसे बस इसी बात का रहा कि उसका अपना बेटा अपने पिता के मातम में आकर दो बूंद आंसू के ना बहा सका.. अपनी माँ को इस स्थिति में अकेला ही रहनें दिया। वो कभी खुद को इसकी वज़ह समझती तो कभी-कभी उसे अपनी परवरिश पर शक होने लगता, शायद उसने ही कोई कमी कर दी थीं।
माहौल से पीडित इंसान अकसर ख़ुद को किसी अंज़ाम की वज़ह मान लेता है, उसके पास शायद कहे तो और कोई विकल्प नहीं होता। अर्जुन सिंह को गुजरे आज़ 7 बरस हो चुके है, गुरू की कोई खबर नहीं हैं, जाते वक्त उसने जो नम्बर सरोज़ को थमाया था वो नम्बर तो कभी लगा ही नहीं.. ना ही गुरू की कोई खबर चलकर आयीं। अब तो उम्मीदी निराशा में बदल चुकी हैं, सरोज़ ने तो अब गुरू के आनें का इंतज़ार भी छोड दिया हैं.. मग़र कमबख़्त ये माँ की ममता हैं जो जाती ही नही.. अर्जुन सिंह जी के चले जानें के बाद अब उनका इस जहां में रह ही कौन गया एक गुरू के अलावा।
हैलो, माँ! माँ मैं गुरू.. गुरू बोल रहा हूँ।
गुरू.. गुरू कैसा हैं.. मेरा गुरू कहाँ हैं तू.. इतने दिनों से कहाँ था तू।
अए! फ़िलहाल तो मैं ऐयरपोर्ट पर हूँ, बस कुछ ही देर में आपके सामनें होऊंगा फिर आप अपने मज़ीद सारें सवाल कर लीजियेगा। ओके मैनें गाडी ले लीं हैं, अभी रखता हूँ और हाँ कुछ खानें को बना दीजियेगा मैं पूरे 1 दिन का भूखा हूँ।
और.. और बताइये यहाँ सब कैसा हैं?
हुम्म्म! सब ठीक हैं। तुम सुनाओ तुम क्या कर रहे हो अमेरिका में?
मैनें तो फ़िलहाल खुद की एक कंपनी स्टार्ट की हैं, छोटी सी हैं मग़र अपनी हैं। कुछ दिनों में भगवान ने चाहां तो सब बेहतर हो जायेगा, फिर इस बार वहाँ की माइग्रेशन की अप्लाई भी करनी हैं।
अच्छा हैं, बेहतर हैं। खुश रहो बेटा।
और बताएं – कर्नल साहब अभी भी अपनी देश-भक्ति निभा रहे हैं या अपनें कामों से फ़ारिग़ होकर आपके साथ रहनें लगे हैं।
ये कैसा सवाल हैं?
क्यूं, इसमें इतना गलत मैनें क्या पूछ लिया।
बेटा जो ज़िंदा नहीं होते हैं ना उनका मज़ाक नहीं बनाया करतें.. ना ही उन्हें ताना दिया करते हैं।
क्या? क्या मतलब है आपका! क्या हुआ पापा को।
तुम इतनी हैरानी क्या दिखा रहे हो.. क्या तुम्हें कुछ भी पता नहीं।
पहेलियां ना बुझाये, दिल भारी सा हुआ है मेरा।
तुम्हारे पापा अब इस दुनियां में नहीं रहें.. एक आतंकी हमले में वो शहीद हो गये, आज 7 बरस होनें को आये हैं ।
और आपनें मुझे बताना ठीक भी नहीं समझा, क्या मैं इतना बुरा हो गया था।
नहीं, मैनें तो नाजानें कितनी दफा तुमसे बात करनी चाहीं.. मगर जो तुमनें नम्बर मुझे दिया था वो तो कभी लगा ही नहीं।
माँ! आज़ मैं बहोत शर्मिंदा सा महसूस कर रहा हूँ। जिन यार-दोस्तों के भरोसें मैं अमेरिका गया था.. उन सभी ने मुझे धोखा दे दिया, मेरे पास तो वापस आनें तक के पैसे नहीं थें और मैं खाली हाथ वापस भी नहीं आना चाहता था। मैं खुद में इतना उलझ गया था की मुझे कभी अपनों का भी कोई होश नहीं आया और देखिये ना जब आया तो मेरे अपनें अब मेरे हाथ से छूट के चले गये।
मैनें अपनें पिता के लिये बहोत बदनेकियां पाली थीं, शायद यहीं इसकी सज़ा थीं.. कि मैं अपनें बाप के लाश को कांधे भी ना दे सका। मैं दौलत के नशे में चूर हो गया था.. मुझे अपनों की भी कोई परवाह नहीं रहीं।
बेटा! तुम्हारे पापा तुमसे बहोत प्यार करते थें.. वो चाहते थें वो यहां वापस आकर तुम्हारें साथ कोई नया बीज़नेस स्टार्ट करे.. वो चाहते थें जितनी दयारें-दिल खडी हुयीं हैं वो सब दूर हो जायें। शायद, रब को कुछ और मंज़ूर था। ख़ैर, अब देखों ना तुम कितने कामयाब हो.. वो जहाँ भी होंगे तुम्हें देखकर खुश ही होंगे। उनको कल भी तुम पर फ़ख्र था और आज़ भी हुआ होगा।
माँ, अब मैं कुछ बीते वक्त को नहीं बदल सकता मगर अब मुझे आपसे बस एक ही इल्तिज़ा हैं.. अब आप मुझसे मेरा हक ना छीनें। मुझसे आपकी ख़िदमती का हक अदा करने दे, आप मेरे साथ अमेरिका चले, वहाँ सारी चीज़ें मैनें बना रक्खी हैं। बस ना मत कहियेगा।
बेटा! अब क्या मेरा कहीं जाना। अब उम्र ही मेरी कितनी बची हैं, भगवान की रहमों-करम से तेरे पापा ने कुछ सेविंग्स कर रखें थे और तो और मेरे साथ सिया भी रहती हैं,, वो याद हैं तेरे कालेज़ की टापर।
वो अंकल प्रखर की बेटी? वो.. वो क्यूं..
अरे ऐसा नहीं बोलते बेटा, वो कितना ख्याल रखते हैं सब मेरा।
नहीं, मैं कुछ नहीं सुनूंगा.. आप मेरे साथ चलेंगी।
बेटा ज़िद मत करो, मैं नहीं चाहती की मैं उस मुल्क को छोडकर कहीं जाऊं जिसके लिये मेरे पति ने अपनी जान तक गँवा दी.. मैं उनकी मिल्कियत हूँ और मैं इन्हीं हवाओं में साँस लेते हुये चैन से गुजरना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ.. मैं जब तक जीऊँ उनकी यादों, उनकी खुशबुओं के साथ गुजारूं। शायद तुम्हें लगे मैं ज़ज्बाती हो गयी हूँ, मग़र अब मेरा भी दिल इस मुल्क को छोडकर जानें को कहीं नहीं करता।
हुम्म्म! तो फ़िर ठीक हैं माँ। अब मैं भी अपनी इस माँ को छोडकर कहीं नहीं जाऊंगा, आखिर अपनें बाप का बेटा हूँ.. अपनी माँ को छोडकर भला कहाँ जाऊंगा।
और तुम्हारा कारोबार?
कारोबार का कोई मसला नहीं हैं.. वो यहाँ भी शुरू किया जा सकता हैं। जितनी दूसरी मुल्क में मेहनत की हैं.. वही अगर मेहनत यहां करता तो कबका ये मकाम पा लेता और किसी भी बात का कोई गिंला ना होता।
आंटी, आपनें दवा ली। वो क्या हैं ना इतनी शापिंग करनी थीं कि मैं तो फँस ही गयी थी.. लगभग.. आंटी.. ये..
ये.. ये गुरू है, तेरा अरसों का इंतख़्वाब।
नितेश वर्मा